स्वतंत्रता के 60 से अधिक वर्ष गुजर जाने के बाद आम आदमी के लिए अपनी बात कहने के स्वतंत्र माध्यम कितने है? लोकतंत्र का चौथा खंभा कहे जाने वाले कथित जन जागरण के माध्यमों जैसे कि अखबारों और टीवी समाचार चैनलों को अब लोगों की आवाज नहीं कहा जा सकता है.
तो क्या आज "वाणी स्वतंत्रता" जैसी बातें मात्र "किताबी" रह गई हैं? सौभाग्य से ऐसा नहीं है. आज भी कम से कम 7 ऐसे माध्यम अथवा जगहें उपलब्ध हैं जहाँ पर आप खुलकर अपने मन की बात रखते हैं. बस इस और कभी हमारा ध्यान नहीं जाता!
ये वे स्थान है जहाँ एक भारतवासी मुखर हो कर अपनी बात रखता है और बहस करता है. सोच कर देखिए -
कटिंग चाय की केटली आम से लेकर खास आदमी तक इस पेय को चाव से पीता है - इसे चाय कहते हैं. और एक कटिंग चाय की प्याली उपलब्ध करवाती है सडक के किनारे लगी केटली. केटली जहाँ मात्र चाय ही नहीं पी जाती है बल्कि क्रिकेट से लेकर विदेशनीति तक के विषयों पर खुलकर बहस होती है और मुद्दों की चीरफाड़ आम बात है.
ब्लॉग
सम्पादकों की कैंची से मुक्त और प्रकाशक की पसंद से स्वतंत्र है यह माध्यम. यह आपका अपना अखबार भी है और डायरी भी. बस मन की बात लिखते जाइए और अब भारतीय अपनी बात बहुत ही मुखरता से रख भी रहे है. नहीं मात्र अंग्रेजी में नहीं, बल्कि हर भाषा में.
ट्विटर
और ब्लॉग का संक्षिप्त स्वरूप है ट्विटर रूपी माइक्रोब्लॉग. और ब्लॉग से कहीं अधिक शक्तिशाली भी. शक्तिशाली इसलिए क्योंकि आपकी कही बात तुरंत आपके पाठक तक पहुँचती है चाहे वह अपने पीसी के पास हो या ना होगा. क्या नेता क्या अभिनेता आज हर कोई इस माध्यम को अपना रहा है. भारतीयों का ट्विटर पर चहकना जारी है. परंतु फिर भी आज ट्विटर का इस्तेमाल करने वाले देशों की सूचि में हम 8वें स्थान पर हैं.
दीवारें
स्वीकार करते हैं कि यह एक गलत तरीका है, मगर अभिव्यक्ति का माध्यम तो फिर भी है ही. दीवारें ना-ना प्रकार के विज्ञापनों से ही नहीं, संदेशों से भी रंगी जा रही है और शायद यह सिलसिला जारी रहेगा.
कार्टून
प्रिंट मीडिया पर भले ही पक्षपात व खबरें बेचने का आरोप लगता हो या अखबारों व टीवी चैनलों की विश्वसनियता बुरी तरह से गिरी हो परंतु कार्टून अभी भी अपनी धार बनाए हुए है अतः आम भारतीय खूद को उनसे जोड़ पा रहा है.
एसएमएस
एक मोबाइल से दूसरे मोबाइल तक मामूली कीमत चुका कर प्रेषित होने वाले लघु संदेश सुचनाएं ही नहीं पहुँचा रहे है, वे विचारों को फैलाने का काम भी कर रहे हैं. यकीन ना हो तो अपना मोबाइल खंगाल लें. आपके किसी मित्र ने "अफज़ल" या "राम सेना" से संबंधित कोई संदेश अग्रेषित किया होगा.
सोश्यल नेटवर्किंग साइटें
फेसबुक, ओर्कुट, मायस्पेस, यूट्यूब... सूचि लम्बी है. सोश्यल नेटवर्किंग साइटें ना केवल मित्रों को और दूर बैठे रिश्तेदारों को आपस में जोड़ती है बल्कि ये साइटॆं विचारों को फैलाने और बहस करने का माध्यम भी बनती जा रही है. आज यहाँ रोज तस्वीरें, वीडियो, कडियाँ आदि पोस्ट की जाती है. लोग बहस करते हैं. लडाईयाँ भी होती है पर विचारों का रैला चलता रहता है.
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंआनन्दित कर दिया भाई आप ने!
जवाब देंहटाएंइस सुंदर से चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
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