कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 24 मई 2011

विश्वविद्यालय प्रशासन की करतूत !!


रायपुर.स्टिंग के दरमियान डीबी स्टार टीम फल व्यवसायी बनकर इंदिरा गांधी केंद्रीय कृषि वि.वि. स्थित आम के बगीचे में पहुंची। यहां खुद को ठेकेदार का पार्टनर बताने वाले पप्पू नामक शख्स ने थोक सौदे के दरमियान खुलासा किया कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने प्राकृतिक रूप से या फिर ग्रीन पेपर से आम पकाने के लिए अनुबंध किया है।

फिर बोला- एक तो यह प्रक्रिया बहुत महंगी है, ऊपर से 15 दिन का समय लग जाता है। अब भला इतना इंतजार कौन करे, इसलिए रसायन से जल्दी-जल्दी पकाकर बाजार में आम पहुंचाया जा रहा है। इसके बाद उसने बताया कि यहां 650 आम के पेड़ हैं, जिनके फलों की बिक्री के लिए इस साल पांच फर्मे आईं थीं।

इनमें से तेलीबांधा स्थित जय भोले फल वालों को 30 हजार रुपए में ठेका मिला।
उधर जनता के स्वास्थ्य से हो रहे इस खिलवाड़ को लेकर टीम ने कुलसचिव एस.आर. रात्रे से सीधी बात की तो वे बोले- मैं तो प्रशासनिक अधिकारी हूं, आम पकाने की विधि के बारे में नहीं जानता, संबंधित अधिकारियों से पूछें।

तो वहीं उद्यानिकी प्रक्षेत्र प्रबंधक वैज्ञानिक जी.एल. शर्मा का कहना है कि दो दिन की छुट्टी पड़ गई इसलिए देख नहीं पाया, अगर ठेकेदार ऐसा कर रहा है तो तत्काल रोक लगाई जाएगी, क्योंकि नियम में तो ऐसा नहीं है। उधर ठेकेदार विजय छाबड़ा अभी भी कह रहे हैं किआम तो कागजों में लपेटकर ही पका रहे हैं, कार्बाइड से नहीं।

> स्टिंग के दरमियान ठेकेदार के कर्मचारी ने बताया कि आम पकाने के लिए किस तरह कार्बाइड का इस्तेमाल किया जा रहा है।

> पहले इस तरह कागज में कार्बाइड निकालते हैं और उसकी पुड़िया तैयार की जाती हैं।

> फिर इन्हें टोकरी में फलों के बीच रख दिया जाता है और तीन दिन में आम पक जाते हैं।

कैसे पहचानें कैमिकल से पके आम

> कैल्शियम कार्बाइड से पके आम पानी में डालने पर तैरने लगते हैं।

>इससे पकाए फल की बाहरी सतह चिकनी न होकर र्झीदार होती हैं।

क्या हैं दुष्प्रभाव

> कैल्शियम कार्बाइड पानी के साथ क्रिया कर एसिटिलीन गैस उत्सर्जित करता है। यह मानव तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करती है जिससे ऊतकों में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है।

> सिर दर्द, चक्कर आना, चिड़चिड़ापन, अनिद्रा, याददाश्त में कमी के साथ भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है।

> आंखों, त्वचा, मुंह, नाक, गला और फेफड़े में जलन, कफ बनना आदि।
22 मई को दोपहर 12.30 बजे स्टिंग के दौरान टीम वि.वि. परिसर स्थित आम बगीचे पहुंची। यहां पप्पू नामक शख्स मिला, जिसने खुद को ठेकेदार का पार्टनर बताया। उससे हुई रिकॉर्डेड बातचीत के अंश..

अब कौन पेड़ों में उनके पकने का इंतजार करता रहेगा

पप्पू, खुद को ठेकेदार का पार्टनर बताने वाला

?आम चाहिए.. मिल जाएंगे क्या?

—कौन सा चाहिए, सब मिल जाएगा। पका-कच्च दोनो हैं बताओ कितना चाहिए..

?पहले रेट बताओ, सही पड़ेगा तब न लेंगे?

—लंगड़ा थोक में 25 रुपए किलो मिलेगा और पकाकर चाहिए तो 5 रुपए एक्सट्रा लगेगा।

?किस चीज से पकाते हो?

—कार्बाइड से पकाते हैं, पूरे हिंदुस्तान में तो ऐसे ही पकाया जाता है, अब कौन उनके पेड़ों में पकने का इंतजार करता रहेगा। साहब लोग बोलते हैं आम की हालत ठीक नहीं है, ग्रीन पेपर से पकाओ। अगर इससे पकाएंगे तो 15 दिन इंतजार करना पड़ेगा और वह महंगा भी तो है।

?लेकिन कार्बाइड से पकाने में नुकसान भी तो है, लोगों की शिकायतें आती होंगी, फिर उन्हें क्या जवाब देते हो?

—अब आपके यहां तो स्टैंडर्ड लोग रहते हैं, हम तो चिल्लर में बेचते हैं, जिसमें फायदा है। 30 हजार में ठेका हुआ है और 25 हजार खर्च होते हैं।

?25 हजार किसमें खर्च हो जाता है?

—ढाई सौ रुपए के भाव से तोड़ने वाले को दिया जाता है, चार लोग लगाए गए हैं। इसके अलावा यहां तीन महीने तक रहना, खाना पकाना खर्च तो होता है न।

मैं प्रशासनिक अधिकारी हूं, मुझसे न पूछें

मुझे नहीं पता कि किस विधि से पकाना चाहिए किससे नहीं.. इस बारे में मुझसे न पूछें। वह तो उद्यानिकी और डीन के कार्यक्षेत्र का मामला है, ठेका देने से लेकर तमाम जवाबदारियां उन्हीं की हैं। मैं प्रशासनिक अधिकारी हूं और इस साल आम बगीचे भी नहीं गया।

एस.आर. रात्रे, कुलसचिव, इंदिरा गांधी केंद्रीय कृषि वि.वि., रायपुर

मैं अभी इस पर रोक लगवाता हूं

उन्हें नैचुरल रूप से या फिर इथिरल से ही पकाने के लिए कहा गया है। कार्बाइड तो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, अगर ऐसा है तो तत्काल ठेकेदार को बुलवाकर इस पर रोक लगाई जाएगी।

जी.एल. शर्मा, वैज्ञानिक, उद्यानिकी प्रक्षेत्र प्रबंधक, इंदिरा गांधी केंद्रीय कृषि वि.वि., रायपुर

‘आम’ की सेहत हो रही खराब लेकिन देखे कौन.

डीबी स्टार टीम जब सोमवार को दोबारा इंदिरा गांधी कृषि वि.वि. पहुंची तो यहां के एक कमरे में कैल्शियम कार्बाइड को कागज में लपेटकर आम की टोकरी में रखा जा रहा था। इस रसायन की वजह से यहां काफी गर्मी हो रही थी।

हद तो यह है कि ठेका शर्तो के विरुद्ध जिस जगह ये प्रक्रिया चल रही थी, उद्यानिकी प्रक्षेत्र प्रबंधक कार्यालय इसके ठीक ऊपर स्थित है। मौके पर ही टीम ने इसकी जानकारी प्रबंधक जी.एल. शर्मा को दी तो वह पहले कहने लगे कि इसकी जवाबदारी तो ठेकेदार की है, हमारा काम केवल ठेका देना था।

जब उन्हें वि.वि. द्वारा तय किए गए नियमों का हवाला किया गया तो बोले- मैं इसे तत्काल रुकवाता हूं, यह तो जनता के स्वास्थ्य के लिए घातक है।

मुनाफे के लिए करते हैं समझौता

टीम की पड़ताल में सामने आया है कि पेड़ पर आम पकने में 15 दिन से महीने भर का समय लगता है। ऐसे में ठेकेदार लंबा इंतजार करने के बजाय आम तुड़वाकर फिर उन्हें पकाते हैं। इसकी तीन विधियां हैं जिनमें आम को ज्यादा से ज्यादा गर्मी देनी होती है।

अखबारी कागज में लपेटने के बाद आम 20-25 दिन में, ग्रीन पेपर में 12-15 दिन में और कार्बाइड के इस्तेमाल से महज 3-4 दिन में पककर तैयार हो जाता है। अधिकतर दुकानदार तीसरी विधि यानी कार्बाइड से पकाना ही बेहतर समझते हैं, जिसमें समय बचता है और मुनाफा भी होता है। आम को कार्बाइड से पकाकर 30 रु. प्रति किलो के हिसाब से थोक में बेचते हैं तो फुटकर में वही 40-45 रुपए तक में जाता है।.

सीधी बात: साबित करना मुश्किल होता है
डॉ. एस.एस. तोमर, पब्लिक एनालिस्ट, राज्य खाद्य एवं औषधि विभाग

?शहर में फलों को कार्बाइड से पकाया जा रहा है?

—पिछले साल नगर निगम के साथ मिलकर विभाग ने कार्रवाई की थी, लेकिन परीक्षण में साबित नहीं कर पाते हैं। जैसे ही सैंपल लेते हैं और टेस्टिंग के लिए भेजते हैं, कार्बाइड गैस उड़ जाती है।

?अगर साबित नहीं कर पाते तो क्या कार्रवाई नहीं होगी?

—अभी सूचना नहीं मिली है, आपके पास जानकारी है तो हमें दे। नियंत्रक साहब से पूछना पड़ेगा, अनुमति मिलते ही कार्रवाई होगी।

?तो क्या केवल निगम कार्रवाई के लिए जिम्मेदार है?

—मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं। लाइसेंस वही जारी करता है इसलिए कार्रवाई का अधिकार भी उन्हीं का है। आपके पास सूचना है तो उसे गुप्त रखिए जल्द इंस्पेक्टरों की मदद से कार्रवाई की जाएगी।

सीधी बात: गलती है, तत्काल रुकवाता हूं
जी.एल. शर्मा, वैज्ञानिक उद्यानिकी प्रक्षेत्र प्रबंधक, इंदिरा गांधी केंद्रीय कृषि वि.वि., रायपुर

?विश्वविद्यालय के बगीचे में ठेकेदार द्वारा आम किस विधि से पकाए जा रहे हैं?

—इथिरल से पकाया जाना है। नियम तो यही कहता है, फिर ठेकेदार की मर्जी क्योंकि हमने तो ठेका दे दिया है। वह बाहर क्या कर रहा है नहीं बता सकते।

?बाहर नहीं आपके परिसर में ही आम कार्बाइड से पकाए जा रहे हैं, जानकारी नहीं है क्या?

—ऐसा नहीं हो सकता, कार्बाइड से नहीं पका सकते यह तो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, मैं तत्काल ठेकेदार से पूछता हूं ?
-यह तो आपके दफ्तर के नीचे ही चल रहा है?

—मैं छुट्टी पर था इसलिए नहीं देख पाया, आपने बताया है तो इस पर रोक लगवाई जाएगी। आप इसे न छापें क्योंकि वि.वि. का नाम खराब होता है। अगली बार से ऐसा नहीं होगा।, आप चाहें तो फिर कभी आकर देख सकते हैं।