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शनिवार, 17 सितंबर 2011

हम भारत के नौजबां, हालात हमी तो बदलेंगे..........
हम भारत के नौजबां, हालात हमी तो बदलेंगे,
उम्र से लम्बी स्याह काली, रात हमी तो बदलेंगे...........
गाँधी बहुत जरूरी हुए, हर काम को करने की खातिर,
... इनके बिना म्रत्यु पत्र भी, मिलता नही समय आखिर,
सच को भी सामने लाने को, जेबें ढीली करने होगी,
जो उनके मेरे मन में है, वो बात हमी तो बदलेंगे.......
हम भारत के नौजबां, हालात हमी तो बदलेंगे..........
सज्जन हमे रास ना आते, गुंडों के तलुवे चाटें,
भूखे को दाना नही, ताकतवर को रबड़ी खिलाते,
"सच का मुंह काला और झूठे का बोलबाला है",
दुनिया ना जो समझे, वो जज्वात हमी तो बदलेंगे........
हम भारत के नौजबां, हालात हमी तो बदलेंगे..........
हर हाथ तोड़ वो डालेंगे, उनको भ्रम बड़ा भारी,
सबको जूते से मसल देंगे, सत्ता के व्यापारी,
देश को जेल बनाने की, निज मन जिनने ठानी है,
उनके भ्रम भरे सारे ख्यालात हमी तो बदलेंगे........
हम भारत के नौजबां, हालात हमी तो बदलेंगे..........
नेता जो संसद में जा, बन बैठे भगवान हमारे,
क़ानून को जो जूती समझे, जनता को बेचारे,
सात पीड़ियों की खातिर, जो देश बेचने को तैयार,
ऐसे गद्दारों की, हर बात हमी तो बदलेंगे........
हम भारत के नौजबां, हालात हमी तो बदलेंगे..........

यही तो है ''माँ''

माँ मन्दिर नहीं होती
न ही भगवान
नहीं जाना पड़ता उस तक जूते उतारकर
माँ हमारा अपना कमरा है
जो राह देखता है
... ... साल भर / रात भर
हम चाहें लौटें या नहीं
और लौटकर
जूते पहने हुए ही पसर जाते हैं हम उसकी गोद में
और ज़माने भर का कीचड़
सुना देते हैं उस कमरे को
सने हुए कमरे
सुनती हुई माँएं
गुस्सा करते हैं कुछ देर
मगर कभी नाराज़ नहीं होते
नहीं फेर लेते चेहरा प्रेमिकाओं की तरह
नहीं कहते कि “तुम गन्दे हो, लौट जाओ”;

यही तो है ''माँ''

बुधवार, 20 जुलाई 2011

ग़लत नही कहा

दिग्विजय सिंह ने ग़लत नही कहा 

&

हर हिंदू शांतिप्रिय होता है लेकिन हिंदूव्त्व वाला हिंदू आतंकी होता है--

हर हिंदू शांतिप्रिय होता है लेकिन हिंदूव्त्व वाला हिंदू आतंकी होता है

आज कुछ मित्रों के साथ बैठे हुए चाय के साथ गपशप हो रही थी किी एक मित्र ने नया जुमला ढूँढ निकाला किी हर हिंदू शांतिप्रिय होता है लेकिन हिंदूव्त्व वाला हिंदू आतंकी होता है. इस पर कई मित्रो ने तस्दीक़ करते हुए कहा किी जब कोई आतंकी घटना होती तो उसकी जाँच मदरसों से शुरू होती है जबकि यह भी वास्तविकता है किी संघ क कार्यालय और उसके सहयोगी संगठन आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त रहे हैं और लिप्त हैं. जाँच उनकी भी होनी चाहिए और अगर द्विपक्षिशेय जाँच हो तो सही आतंकी पकड़े जाएँगे और और आतंकी घटनाओं पर रोक लग सकती है. प्रगया ठाकुर से लेकर असीमनंद तक भगवा आतंकवाद के एक लंबी श्रंखला है. और अपने आकाओं को खुश करने क लिए यह लोग आतंकी घटनायें करते रहते हैं और पाकिस्तान विरोध क नाम पर पूर्व मानसिकता क आधार पर ज़बरदस्ती एक दिशा में जाँच कर कुछ प्रतिफल ना मिलने पर भी कुछ लोगों को जेल भेज कर घटना का खुलासा कर इतिश्रि कर लेते हैं हद तो यहाँ तक हो गयी किी 15 अगस्त 2000 की पूर्व संध्या पर साबरमती बम विस्फोट कांड में कोई पुख़्ता सबूत ना होने क बावजूद भी अभियुक्तों क बयान के आधार पर आरोप पत्र दाखिल कर दिए गये क्योंकि जिस वाद की जाँच की दिशा ही मदरसे की ओर से ही शुरू की गयी थी यदि सही विवेचना हुई होती तो वास्तविक आतंकी पकड़े जाते और आतंकवाद क ख़ात्मे की ओर हमारा एक कदम होता.

सोमवार, 18 जुलाई 2011

कोई तुमसे पूछे ....

कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,

तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .

एक दोस्त है कच्चा पक्का सा ,
एक झूठ है आधा सच्चा सा .
जज़्बात को ढके एक पर्दा बस ,
एक बहाना है अच्छा अच्छा सा .
जीवन का एक ऐसा साथी है ,
जो दूर हो के पास नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .
हवा का एक सुहाना झोंका है ,
कभी नाज़ुक तो कभी तुफानो सा .
शक्ल देख कर जो नज़रें झुका ले ,
कभी अपना तो कभी बेगानों सा .
जिंदगी का एक ऐसा हमसफ़र ,
जो समंदर है , पर दिल को प्यास नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .
एक साथी जो अनकही कुछ बातें कह जाता है ,
यादों में जिसका एक धुंधला चेहरा रह जाता है .
यूँ तो उसके न होने का कुछ गम नहीं ,
पर कभी - कभी आँखों से आंसू बन के बह जाता है .
यूँ रहता तो मेरे तसव्वुर में है ,
पर इन आँखों को उसकी तलाश नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं

अनचाहे अनजाने पल

अनचाहे अनजाने पल.
   गये कहाँ मस्ताने पल.
नागफ़नी के काँटों से, 
   मरुथल से वीराने पल.
कौन, कहाँ, कब, क्यूँ, कैसे,
   लगे सवाल उठाने पल.
रात तुम्हारी यादों के,
   आ बैठे सिरहाने पल.
ख़ामोशी के आलम में,
   बीते कितने जाने पल.
तेरे जिस्म की ख़ुशबू के,
   देकर गये ख़ज़ाने पल.
उस बरगद की छाँव तले,
   बैठ रहे सुस्ताने पल.
जीवन रेत पे बिखर गये,
   मोती के थे दाने पल.
तेरी मेरी दूरी के,
   फिर आ गये जलाने पल.
जाने फिर कब लौटेंगे,
   वो गुज़रे दीवाने पल.
तुम और मैं, हम हो बैठे -
  थे कितने मनमाने पल.
सदियों पर इल्ज़ाम बने,
   निकले बहुत सयाने पल.
इस दुनिया में ऐ "साबिर"
   कौन है क्या ? न जाने पल.

आग बरसती असमान से, मेघा तुम कब बरसो

आग बरसती असमान से, मेघा तुम कब बरसोगे।
सड़कें सूनी गलियां सूनी, सूने हुए नजारे रे,
मंदिर सूने मस्जिद सूनी, सूने मठ गुरूद्वारे रे,
घाम पसरता डाली -डाली, गर्मी द्वारे -द्वारे रे,
जनजीवन बेहाल हो गया, सिकुड़े नदी किनारे रे ,
श्याम रंग संग लगन लगते, तन थे जो उजियारे रे,
चातक पीहू-पीहू भूले, पानी -पानी पुकारे रे,
हम तरसे तेरे बिन बदरा, तुम भी हम बिन तरसोगे।
आग बरसती असमान से, मेघा तुम कब बरसोगे।

शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

मत चाहो उसे जिसे तुम पा न सको,

मत करो कोई वादा जिसे तुम निभा न सको,
मत चाहो उसे जिसे तुम पा न सको,
प्यार कहाँ किसी का पूरा होता है,
इसका तो पहला शब्द ही अधूरा होता है.. !!

...............ISKA JAWAB...............

माना की प्यार का पहला अक्षर अधूरा है,
लेकिन 'प' को निकल दो तो यार रह जाता है
और आप जैसा यार हो
तो ज़िंदगी से भी प्यार हो जाता है
...............……..

यूं तो प्यार करने वाले तुम्हें कम न मिलेंगे,
मिल जाएंगे हम जैसे बहुत ,,, पर हम न मिलेंगे.

...........................

उन्हें भूलने की कोशिश की मैंने,
दिल ने कहा याद करते रहना...
वो हमारे दर्द की फरियाद सुने न सुने,
अपना तो फ़र्ज़ है उन्हें प्यार करते रहना...............
रात गुमनाम होती है दिन किसी के नाम होता है !!
हम ज़िंदगी कुछ इस तरह जीते हैं ह्रर लम्हा दोस्तों के नाम होता है
उधर मची थी चीख-पुकार,
इधर केन्द्रीय मंत्री का 'कैटवॉक शो'

नई दिल्‍ली. ये हैं केंद्रीय मंत्री और रांची के सांसद सुबोधकांत सहाय। कल मुंबई में धमाकों से मासूम मारे जा रहे थे और इसकी सूचना इन तक पहुंच चुकी थी, इसके बावजूद उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता अशोक कुमार प्रधान की सुपुत्री के डिजाइन किये कपड़ों (?) के फैशन शो में शामिल हुए।इस अर्द्धनग्न पार्टी में कौन-कौन शामिल था, ये गौर करने लायक है- भाजपा की राष्ट्रीय महासचिव आरती मेहरा, भाजपा राष्ट्रीय सचिव वाणी त्रिपाठी, पूर्व नागरिक उड्यन मंत्री राजीव प्रताप रूढ़ी की पत्नी नीलम प्रताप रूढ़ी, मशहूर कलाकार सुरेश ओबेराय, निर्देशक मधुर भंडारकर, मुगदा गोडसे, अनुष्का शर्मा और भी कई लोग। इनसे जब एक पत्रकार ने पूछा कि आज मुंबई में हमला हुआ है और आप लोग कैटवाक देख रहे हैं, तो इनमें से ज्यादा का जवाब था, जिंदगी जिंदादिली का नाम है, हंस के जिये जा...

शनिवार, 2 जुलाई 2011

आनंद हर्षुल की एक कहानी


पुतले                      A story of - आनंद हर्षुल
 वे सीमेंट के थे -- छ: पुतले। सीमेंट के रंग की ही साँवली त्वचा लिए। काँच की रंगीन गोलियों और चीनी मिट्टी के टूटे बर्तनों से,उनकी त्वचा सजी थी। (इन काँच की गोलियों का खेल, बच्चे अब भूल चुके थे। बच्चे अब कम्प्यूटर के सामने बैठकर दुनिया से खेल रहे थे।और चीनी मिट्टी के बर्तन इस तरह तड़क चुके थे, कि खाने की टेबल पर किसी काम के नहीं रह गए थे।) पुतलों की देह, मनुष्य के इस्तेमाल से बाहर आ गयी चीजों से सजी बनी थी। यह अलग बात है कि मनुष्य के कारीगर हाथ उनकी देह पर झिलमिलाते से दिख रहे थे: मनुष्य की अंगुलियों की झिलमिलाती थाप । पुतलों का कद बहुत बड़ा नहीं था। वे बच्चों के कद में जैसे बड़े लोगों का चेहरा पहने हुए थे। इनमें चार पुरुष थे और दो स्त्रियाँ। स्त्रियाँ पुरुषों के बीच थीं। सर पर टोकरी रखीं। एक स्त्री की टोकरी में मछलियाँ थीं और दूसरी स्त्री की टोकरी में सब्जियाँ । टोकरी में रखी मछलियाँ, बरसों हो गए अब तक सड़ी नहीं थीं और सब्जियाँ अब भी ताजी थीं। सीमेंट के पुरुषों की पीठ उनके बीच में खड़ी उन दो सीमेंट की स्त्रियों की ओर थीं । पुरुष - पुतले, स्त्री - पुतलों को नहीं पृथ्वी की चार दिशाओं को देखते खड़े थे। पृथ्वी की चारों दिशाएँ पुरुष-पुतलों के कंचे की आंखों में आकर डूब रहीं थी। इन छ: पुतलों के चारों ओर लोहे की मोटी छड़ों से बना गोल घेरा था। घेरा, सड़क से ढ़ाई फुट ऊँचे ईंटों के गोल प्लेटफार्म पर गड़ा हुआ था। लोहे की छड़ों के सिरों पर भाले थे। भालों की नोक, पुतलों को देखो तो ऑंखों में चुभती थी। यह किसी को मालूम नहीं था कि पुतले जब घेरे के बाहर देखते हैं तो उनकी कंची ऑंखों में भाले की छाया गड़ती है या नहीं... कोई यह सोचता ही नहीं था कि पुतले भी देखते होंगे स्त्री पुतले स्त्री की तरह और पुरुष पुतले, पुरुषों की तरह देखते होंगे -- इस चौक से जितना उन्हें दिखता होगा। उन पुतलों के आसपास, लोहे के गोल और नुकीले घेरे के भीतर, मखमली घास उगी थी हरी घास के ऊपर फूलों के छोटे-छोटे पौधे उभरे हुए थे -- कुछ इस तरह कि कोशिश कर थोड़ा और उभरना चाह रहे हों .... थोड़ा और आसमान की ओर उठना ... थोड़ा और पुतलों के कद को छूने की कोशिश करना ... उन उभरते फूलों ने, उस गोल घेरे को चटक रंगों से भर दिया था -- नीला, पीला, लाल बैगनी... रंगों में घेरे के भालों की नुकीली और लोहे के स्वाद - सी छाया कहीं-कहीं गड़ी सी दिख रही थी। इन फूलों के पास, बच्चों को भाने वाले सभी रंग थे। कभी कोई रंग फूलों का खटकता था बच्चों के मन में तो आश्चर्य कि फूल अपना रंग बदल लेते थे। जबकि बच्चे, उन फूलों को उस व्यस्त चौराहे के गुजरते हुए, बस एक झलक ही देख पाते थे। बच्चों की उस एक झलक में उपजी खटक को, सीमेंट के इन पुतलों के आस-पास उगे फूल तुरंत पकड़ लेते थे और मुस्कुराते हुए अपना रंग बदल देते थे कि बच्चा जब अगली बार गुजरे चौराहे से तो अपनी पसंद का रंग , फूलों में देख सके। फूल ऐसे खिल थे, जैसे वे पुतलों को छूने की कोशिश कर रहे हों। हरी घास इस तरह बेचैनी थी, जैसे वह ऐसी हलचल अपने भीतर चाह रही हो कि पुतले जो दिखने में बड़ों की तरह थे वे मन से बच्चे बन, उस पर खेल सकें। फूल और घास की इस कोशिश को आसमान ध्यान से देख रहा था और आसमान का नीला रंग, पुतलों के लिए हो रही, फूल और घास की इस निश्छल कोशिश पर झर रहा था... चौक की गोल ऊंचाई पर उगी, इस हरी घास की जमीन पर, फूलों के पौधों के साथ-साथ, वे पुतले भी उगे हुए से ही थे -- मनुष्य की गढ़ी थोड़ी सजावटी और थोड़ी बनावटी उस घास की हरी ऊंचाई-निचाई पर । इसीलिए वे छ: पुतले एक दूसरे से थोड़ा ऊपर नीचे खड़े थे। स्त्री - पुतलियाँ ढाल पर थीं कुछ इस तरह कि चौक से उतरकर बाजार चली जाएँगी -- सब्जी और मछली बेचने और पुरुष - पुतले अपने सामने दिखती दिशाओं पर निकल पड़ेंगे, अनंत यात्रा पर जो समुद्र के किनारे जाकर खत्म होगी या समुद्र के तल पर। पुतले इस शहर के सबसे अभिजात्य चौक पर खड़े थे सिविल लाइन्स स्क्वैअर पर। शहर इसी चौक से उत्पन्न होने और इसी चौक पर समाप्त होने के लिए अभिशप्त था। यह चौक उस कॉलोनी के मध्य में था जो अपनी ताकत से इस शहर को और इस राय को चला रही थी... इस राय का मुख्यमंत्री, सारे मंत्री, सारे आई.ए.एस., इसी कॉलोनी में रहते थे। वे छ: पुतले अपनी कंची आंखों से उनकी आवाजाही देखते रहते थे। इन पुतलों की पलके थीं सूर्य और चंद्रमा। पुतलों की कंची ऑंखें, सूर्य की रोशनी में जागती थीं और चंद्रमा की रोशनी में सोती थीं। पुतलों की पलकें पुतलों के चेहरे पर नहीं आसमान में थीं और इस तरह आसमान में छ: सूर्य और छ: चंद्रमा थे, जब तक चौक पर थे छ: पुतले । सबसे बड़ी बात यह थी ये पुतले, महापुरुषों के पुतले नहीं थे। महापुरुषों के पुतले अपनी ऑंखों से कुछ नहीं देख पाते हैं। वे घने अंधेरे में शहर के कई चौराहों पर खड़े रहते हैं। महापुरुषों के पुतलों के लिए, दिन और रात बराबर हैं। शहर और जंगल बराबर हैं। महापुरुषों के पुतले देखने के लिए नहीं, महान भव्यता देने के लिए शहर में जहाँ-तहाँ खड़े हैं, जैसे खड़े हैं वे जंगल में, शहर में नहीं। इस राय का मुख्यमंत्री, सारे मंत्री, सारे अधिकारी , महापुरुषों के पुतलों के कारण ही इस चौराहे पर सामान्य जनों के पुतलों को अनदेखा करते हुए, महान भव्यता में आवाजाही कर रहे हैं : बेशर्म आवाजाही । इस सिविल लाइन्स स्क्वैअर पर खड़े पुतले, जिनके पास महापुरुषों का चेहरा नहीं था एक दूसरे की पीठ को महसूस कर रहे थे। वे घूमकर, एक दूसरे की पीठ देखना चाह रहे थे। पर वे घूम नहीं पा रहे थे। पैर उनके गड़े हुए थे हरी घास के नीचे बिछी, काली के बाद भूरी और कड़ी मिट्टी के भीतर। इसलिए पुतलों के पास एक दूसरे का चेहरा नहीं था और उन्हें यह पता नहीं था कि लगभग वे एक जैसे दिखते हैं। उन्हें यह भी पता नहीं था कि जब एक पुतला, मन ही मन मुस्कुराता है, तब ठीक उसी क्षण, सभी पुतले मन ही मन मुस्कुराते हैं। जब एक पुतला होता है दुखी तो सभी पुतले होते हैं दुखी। सच तो यह था कि पुतलों के पास खुद के चेहरे भी नहीं थे और उन्हें यह नहीं पता था कि वे दिखते कैसे हैं। वे अपने को रचने वाली मनुष्य ऍंगुलियों की हरकतों को याद कर अपने चेहरे की कल्पना करते रहते थे और कभी ठीक-ठाक ढंग से अपने चेहरे तक अपनी कल्पना को नहीं पहुँचा पा रहे थे । खुद के चेहरे तो मनुष्यों के पास भी ठीक-ठाक नहीं हैं ...आईना देखो तो चेहरा दिखता है... आईने के सामने से हटते ही चेहरा पास से गायब हो रहा है.... मनुष्य अपने चेहरे के आभासों को रच रहा है... मनुष्य चेहरे के आभासों के साथ जी रहा है... मरते समय मनुष्य के पास हमेशा दूसरों के चेहरे रहते हैं.. मनुष्य दूसरों के चेहरों से रची गहराई में धीरे-धीरे डूबते हुए मरता है। पुतलों के पास कोई आईना नहीं था। पुतलों के लिए अगर आसमान को आईना मान लें तो आसमान में पुतले अपना चेहरा नहीं देख पा रहे थे। पुतलों को चौराहे से गुजरती मनुष्यों की ऑंखे देख रही थीं जरूर, पर मनुष्यों की ऑंखों में उभर नहीं रहा था पुतलों का चेहरा। इन पुतलों पास दृष्टि थी अनंत। इस सिविल लाइन्स स्क्वैअर की दक्षिण दिशा की सड़क पुलिस लाइन तक जाकर खत्म हो रही थी । कह सकते हैं कि यह सड़क पुलिस के बूटों की आवाज और खुरदुरे खाकी रंग तक पहुँचा रही थी क्योंकि जैसे ही सड़क पुलिस लाइन के गेट के भीतर घुसती -- बदल जाती थी। वह पुलिस की सड़क बन जाती और सामान्य आदमी जब उस पर पैर रखता, गेट के बाहर से गेट के भीतर, तो उसे अपने पैरों के पंजे, अपने लगना बंद हो जाते थे। सामान्य आदमी को लगता कि उसके पंजे खाकी वर्दी के बूटों के नीचे आ रहे हैं, -- बार-बार और कुचलते-कुचलते बच रहे है और कभी-कभी कुचल भी जा रहे हैं । इस तरह कि सामान्य आदमी लहूलुहान पैर लेकर घर लौट रहा था और कई दिनों तक चलता रहता था -- लंगड़ाता। इसी सड़क की बायीं ओर सिविल लाइन्स स्क्वैअर को छूते हुए सबसे पहले पूर्व मुख्यमंत्री का बंगला दिख रहा था । पुराना बंगला : मंगलोरी खपरैलों से ढंका । खपरैल काई के धब्बों से भरे हुए थे । बंगले से कई गुना बड़ा, बंगले का खुला क्षेत्र था -- पेड़ों के साथ और पेड़ बंगले के साथ थे। बंगला पूर्व मुख्यमंत्री के साथ था जो शहर के बीचों बीच, एक बड़ी भूमि को घेरे, धरती पर थोड़ा धँसा सा अपने पुरानेपन पर खड़ा था। बंगला इतने पुरानेपन पर था कि रंगरोगन के बावजूद यह लग रहा था कि यह थोड़ा और पुराना होगा तो ध्वस्त हो जाएगा। यह पुरानापन सिर्फ बाहर था -- अंदर बंगला भव्य था। यह जनता को धोखा देने के लिए था कि देखो पूर्व मूख्यमंत्री को कितना जर्जर बंगला दिया गया है। जबकि यह दिया गया नही,ं उनके द्बारा चुना गया बंगला था। जनता बंगले के भीतर कभी नहीं जाती थी और हमेशा बंगले का बाहरी ध्वस्त-सा दृश्य अपने मन में रखती थी और खुश होती थी। इसी सड़क के दायीं ओर एक बड़े व्यापारी का विशाल दुमंजिला बंगला था जो हमेशा सूना दिखता था, जैसे वह व्यापार मे ंलिप्त अपने मालिक के मुक्त होकर इस शहर में आने का इंतजार करता खड़ा हो। पूर्व मुख्यमंत्री का सरकारी बंगला, इस व्यापारी के बंगल के सामने दयनीय दिख रहा था। यह बस दिखना था कि वस्तुएँ जैसे दिख रही थीं वैसी वे दर असल थी नहीं । व्यापारी के बंगले से यादा ताकत, पूर्व मुख्यमंत्री के बंगले के भीतर अब भी मौजूद थी। यही व्यापारी, पूर्व मुख्यमंत्री के चरणों में लोट चुका था -- धन के साथ, जब वे मुख्यमंत्री थे और शब्द 'पूर्वÓ उनके साथ नहीं लगा था। अब यह व्यापारी नए मुख्यमंत्री के चरणों में लोट रहा था। व्यापारी लोटता है तो चरणों में धन बिखरता है। जितना धन व्यापारी चरणों में बिखेरता है -- उससे कई गुना यादा धन वापस बटोर कर ले जाता है। जिन चरणों में धन बिखरता है, वे यह सब जानते हैं। चरणों के आस पास बिखरा धन दिखता है, पर व्यापारी कुछ देकर जो अधिक ले जाता है -- वह धन जनता का है और इसीलिए मुख्यमंत्री या मंत्री या अधिकारी को वह धन दिखायी नहीं देता है। व्यापारी का बंगला कभी भी पूर्व मुख्यमंत्री के बंगले की ओर टक-टकी लगाकर नहीं देखता है। वह जब देखता है कनखियों में देखता है। कुछ इस तरह कि उसके देखने को पूर्व मुख्यमंत्री का बंगला पकड़ न पाए। देखों इस तरह कि न देखने जैसा लगे। पूर्व मुख्यमंत्री को अपने सामने झुके सिर पसंद हैं -- उनके चरणों को देखते सिर। पूर्व मुख्यमंत्री ने यह सोचा नहीं था कि वे दुबारा, सत्ता पर नहीं आ पाएंगे। वे नए बने राय के पहले मुख्यमंत्री थे जोड़-तोड़ में माहिर। पर राय के दूसरे चुनाव में, उनका दल बहुमत नहीं पा सका था और उन्हें वह बंगला छोड़ना पड़ा था जिसकी दिशाएं वास्तु शास्त्रियों और जिसका मुहूर्त योतिषों ने बहुत ठोक बजाकर तय किया था। मुख्यमंत्रीत्व काल का वह बंगला, कलेक्टर से छीना गया था, क्योंकि राय का यह पहला मुख्यमंत्री कभी कलेक्टर था और एक बड़े भ्रष्ट-कांड में फंसने से बचने के लिए राजनीति के शरण में आया था। वह उस बंगले को शुभ समझता था। राजनीति इतनी उसे फली थी कि वह नए राय का पहला मुख्यमंत्री बन गया था। पर अब ऐसी स्थिति नहीं थी। अब वे पूर्व मुख्यमंत्री थे और किसी का कोई बंगला छीन नहीं सकते थे। उन्हें सरकार से प्रस्तावित दो चार बंगलों में से एक चुनकर संतोष करना था: फालतुओं में एक फालतू को चुनने सा। पूर्व मुख्यमंत्री के पास निजी बंगले असंख्य थे। देश के हर बड़े शहर में और विदेश में पता नहीं किसके किसके नाम पर बंगले थे। पर सरकारी बंगले में रहना, सत्ता में रहने जैसा था। जर्जर दिखते बंगले के भीतर रहते हुए पूर्व मुख्यमंत्री जर्जर सत्ता के भीतर रह रहे थे। सत्ता से हटते ही, ठीक दूसरे दिन, पूर्व मुख्यमंत्री के कमर से नीचे का हिस्सा मर गया -- अचानक । वे अपने कार्यकत्ताओं को गाली बकते ढह गए फर्श पर, फिर जब उठे तो व्हील चेअर में थे। उन्हें अपना ही पेशाब दिख रहा था, पर महसूस नहीं हो रहा था कभी-कभी धोखे से उनकी अंगुलियाँ कमर के नीचे चल देतीं तो टट्टी या पेशाब से लिथड़ जाती थीं और वे थोड़ी टूटती और बिखरती सी दयनीय आवाज में अपने अधीनस्थों और परिजनों पर चिल्लाने लगते थे.. हास्यापद स्थिति थी, जिससे दु:ख चू रहा था। पूर्व मुख्यमंत्री के शरीर से चू रहे इस दु:ख को, पैसा पोछ नहीं पा रहा था। सार्वजनिक जगहों पर बड़ी मुश्किल हो रही थी। वैसे तो उनकी कमर के नीचे का हिस्सा पूरी तरह ढँका रहता था। -- महँगी खुशबू में डूबा हुआ। पर बदबू को ढँकना इतना आसान नहीं था। बदबू उनकी कमर के नीचे बिखेरी गयी खुशबू को फाड़ती आखिर ऊपर आ ही रही थी और राय में जहाँ- तहाँ फैल रही थी। पूर्व मुख्यमंत्री का इस बदबू पर कोई बस नहीं था। वे अपने पुन: सत्ता में आने का इंतजार कर रहे थे। उन्हें पता था कि सत्ता में आते ही उनकी कमर के नीचे का हिस्सा पुन: जीवित हो जाएगा और कमर के नीचे से उठती बदबू , खुशबू में बदल जाएगी .... एक सुबह इस सिविल लाइन्स स्क्वैअर के इन छ: पुतलों ने देखा कि पूर्व मुख्यमंत्री के बंगले के सामने एक दुकान सजी हुई है। बंगले के काँटा-तार के घेरे ( जिसमें कुछ लतरें, जिद कर चढ़ी हुई ं थीं और जिनकी पत्तियाँ धूल से भरी हुई थीं) पर वस्तुओं की खाली चमकीली पालिथीन की थैलियाँ और खाली पुट्ठे के डिब्बे, बड़ी जतन से तार के काँटों पर फँसाकर सजा दिए गए थे। घेरे के नीचे सड़क किनारे टीन और प्लास्टिक के छोटे-बड़े डिब्बे तथा बोतलें, करीने से सजी रखी हुई थीं। इस दुकान में मशरूम के डिब्बे से लेकर, चाकलेट के डिब्बे तक थे। इसमें कंडोम से लेकर, एंटी सेप्टिक क्रीम तक के डिब्बे और सिगरेट के डिब्बे से लेकर, क्रार्नफ्लेक्स तक के डिब्बे थे। इस दुकान में राशन और तेल के डिब्बे भी थे। बासमती चावल की पालीथीन-थैली अपने भीतर इस तरह हवा भर कर फरफरा रही थी कि लग रहा ता चावल से भरी हुई है। सड़क किनारे रखे खाली डिब्बों को देखकर कोई पता नहीं कर सकता था कि वे खाली हैं, पर काँटातार पर लटकी पालीथीन की थैलियाँ अपने खाली और हवा से भरे होने को बार-बार कह रही थीं। इन खाली डिब्बों और पालिथीन की थैलियों के बीच एक आदमी बैठा था -- जिसका कद पांच फुट आठ इंच था। शरीर तगड़ा और रंग काला था। सूरज बरसो से उसके खुले शरीर से लिपट रहा था सीधे । शरीर पर उसने बस चड्डी पहन रखी थी -- शेष देह नंगी थी, एड़ियों तक : काली चमकती। सूरज इसलिए सुनहरा था कि उसने इस आदमी के शरीर से रंग गोरा सोख लिया था। इस आदमी की काली देह पर, जहाँ-तहाँ मैल की पतर्ें उभरी हुई थीं। यह आदमी बरसों से नहाया नहीं था। वह बस बारिश में भीगता रहा था -- बरसों से और बारिश ने उसे उसे जितना साफ किया था छूकर, यह आदमी उतना ही साफ हुआ था। बारिश के बाद, हवा और धूल ने उसे जितना मैला लिया था -- वह उतना मैला होता गया था। उसकी दुकान भी बारिश और हवा के खेल के भीतर फंसी हुई थी । दुकान को हवा और बारिश मिटाने लगते थे और वह उन्हें सहेजता था। होता यह था कि दुकान के हवा से उड़ जाने पर या पानी में बह जाने पर वह शहर के मुख्य बाजार की ओर निकल पड़ता था देर रात, जैसे थोक व्यापारियों के यहाँ कोई चिल्हर विक्रेता खरीददारी के लिए जाता है। बंद दुकानों के सामने फेंक दी गयी खाली पालिथीन की थैलियों, डिब्बो और बोतलों वह इस तरह उठाता था, जैसे वे भरे हुए हैं। रात उसके उठाए खाली डिब्बे, बोतल और पालीथीन की थैलियाँ अंधेरे से भरे हुए रहते थे। सूरज उगता सुबह तो भी डिब्बों में अंधेरा भरा रहता था। पालीथीन थैलियों और प्लास्टिक की बोतलों में अंधेरे के साथ-साथ दिन के उजाले की छाया भी बैठी रहती थी। वह आदमी उनके खालीपन को नहीं पहचानता था। उसे खाली डिब्बे, पालीथीन थैलियों और बोतलें -- वस्तुओं से भरी और भारी लगती थीं। वह जब पानी की खाली बोतल का मुँह आसमान की ओर उठा अपने ओठों से लगाता ता तो उसका भला गट्गट् की आवाज निकालने लगता था। चावल की पालीथीन से उसकी हथेली पर चावल गिरने लगता और कार्नफ्लेक्स के रंगीन डिब्बे से कार्न फ्लेक्स वह फॉकता तो मुँह से कुरुम कुरुम की आवाज उठने लगती। सिगरेट के खाली डिब्बे से वह सिगरेट निकालता और माचिस की खाली डिब्बी से तीली निकालकर वह सिगरेट को उस तीली से छूता तो रोशनी फूटती और सिगरेट जलने लगती थी। वह आदमी अभी सिगरेट का लंबा कस खींच रहा था और धुआं जब उसने अपने फेफड़ों से बाहर छोड़ा तो चौराहे पर खड़े छ: पुतले उस धुएं में डूबे गए। वह दिन भर ग्राहकों का इंतजार करता रहता था। वह रातभर ग्राहकों का इंतजार करता। ग्राहक कोई नहीं आता। उसका मन खाली डिब्बों और पालिथीन की वस्तुएं तो रच लेता था, पर ग्राहक नहीं रच पा रहा था। हवा और पानी ही थे उसके ग्राहक आते और पूरी दुकान का समान एक बार में खरीद कर ले जाते। वह खुश होता कि सब कुछ बिक गया और फिर दुकान सजाने निकल पड़ता -- खाली डिब्बे, पालिथीन की थैलियाँ बीनने । बीनते- बीनते वह अपनी दुकान की पुरानी जगह को भूल जाता था। पर उसे यह लगता था कि वह एक जगह पर ही बरसों से वस्तुओं को बेचता रहा है अब तक। इस तरह वह पूरे शहर भर में अपनी दुकान लगाता घूम रहा था और पूरा शहर उसके लिए दुकान की एक छोटी जगह में बदल चुका था। पूर्व मुख्यमंत्री के बंगले के सामने की यह जगह भी उसे ऐसी लग रही थी कि वह बरसों से यहां बैठा है। अपनी दुकान सजाए और सीमेंट के छ: पुतले उसे देख रहे हैं -- लगातार, जैसे उसकी दुकान के सामने लगातार मौजूद है छ: ग्राहक जो उसकी दुकान की किसी भी वस्तु को खरीदने अब तक झुके नहीं हैं। वह दिन में दो-तीन बार सीमेंट के पुतलों के चेहरों के सामने पालिथीन की थैली और डिब्बे लहराते हुए मोल भाव कर चुका है। रेट फिक्स है... रेट फिक्स है, वह चिल्ला चुका है कई बार। पहली बार उसे ग्राहक दिखे है एक साथ जो टीक उसकी तरह उसकी दुकान के सामने खड़े हैं। पूर्व मुख्यमंत्री की कार, उनके बंगले के भीतर गयी कि बाहर बंगले के गेट पर तीन सिपाही आए तुरन्त । पूर्व मुख्यमंत्री के आदेश की हड़बड़ी और बेचैनी उन तीनों के चेहरों पर इस तरह थी कि वे एक चेहरे के सिपाही लग रहे थे। उन तीन सिपाहियों ने उस आदमी को घेर लिया जो पूर्व मुख्यमंत्री के गेट पर दुकान लगाए बैठा था खाली डिब्बों और पालिथीन की थैलियाँ की । उन तीनों ने उस आदमी पर हमला बोला सबसे पहले काँटा-तार की फेंसिग से लटकी पालिथीन की थैलियों और पुट्ठों के रंगीन डिब्बों को नोच-नोचकर एक जगह ढेर बना दिया। फिर वे तीनों, जमीन पर सजे काली डिब्बों को पैरों और हाथों दोनों की मदद से समटेने लगे। अब उस आदमी की दुकान एक ढ़ेर में बदल गयी थी। उनमें से एक सिपाही ने अपनी जेब से लाइटर निकाला खट्ट की आवाज हुई। एक सुनहरी लौ चमकी। लौ के साथ-साथ वह आदमी दुकान के ढ़ेर पर झुका और लौ ने ढेर को छू लिया। अब उन तीन सिपाहियों का ध्यान, उस आदमी पर गया जो पूर्व मुख्यमंत्री के गेट के सामने खाली डिब्बों और पालिथिन थैलियों की दुकान लगाने की गुस्ताखी कर चुका था । उन्होंने देखा कि वह आदमी उन्हें घूरता खड़ा है नंगधंड़ग, बायें हाथ से अपने अंडकोषों को सहलता । सिपाही जब तक सामान का ढेर लगा रहे थे वह आदमी यह मान रहा था कि ये पूरा सामान खरीद रहे हैं : अच्छे ग्राहक । उन तीनों ने ध्यान नहीं दिया था -- वह आदमी खुश और उत्तेजित उनके आगे-पीछे होता रहा था । जब उन तीनों में से एक ने ढेर को लाइटर की लौ से छुआ तो अब वह इस घटना को समझने की कोशिश कर रहा था कि कोई दुकान से सामान खरीद कर आग के हवाले क्यों करेगा ... उस आदमी के चेहरे पर उन तीनों को घूरना जो उभरा था, इसीलिये उभरा था । वे तीनों गुस्से से भर गए । वे आगे बढ़े । उस घूरते आदमी की ओर हाथ उठाकर, गाली बकते हुए । वह आदमी उन्हें घूरता, पीछे हटने लगा । वे तीनों जितने कदम आगे बढ़ रहे थे, वह आदमी उतने कदम पीछे हट रहा था -- सड़क के किनारे-किनारे, जहाँ उसकी सीध में, उसकी दुकान ढेर बनी जल रही थी । वह जलते ढेर से दूर हो रहा था । पर उस आदमी का घूरना लगातार बना रहा -- लाल ऑंखों से । वे तीनों उसके पीछे दौड़े तो वह आदमी अपना घूरना, सड़क के किनारे, उन तीनों के लिये गिराकर मुड़ा और दौड़ पड़ा । उन तीनों ने उसे इतनी दूर तक दौड़ाया था कि वह पूर्व मूख्यमंत्री के घर के सामने की जगह को भूल जाए। वापस ना आए दुबारा । दुबारा सजा न ले अपनी खाली दुकान । पर आश्चर्य कि वह काला नंग-धंड़ग आदमी ,सुबह-सुबह फिर पूर्व मुख्यमंत्री के बंगले के सामने खड़ा दिखा -- अपनी दुकान को ढ़ूँढता जो एक काले छोटे ढेर में बदल चुकी थी । वह सूरज के साथ-साथ बंगले के सामने उगा था । वह रातभर पूरे शहर में भटकता रहा था -- इस जगह को ढूँढ़ता । रात उसकी ऑंखों में बैचेन बैठी थी । सुबह उसने अपने को पूर्व मुख्यमंत्री के बंगले के सामने खड़ा पाया था । वह आदमी अपनी दुकान के जले हुए ढ़ेर के सामने बैठ गया । अब भी कुछ पालिथीन और एकाध पुट्ठे के डिब्बे में -- उस दुकान के निशान, काँटा-तार के घेरे और सड़क किनारे की जमीन पर अब भी दिख रहे थे । आदमी उकड़ू बैठा था । काँटा-तार पर फँसी पालिथीन की एक छोटी थैली हवा के साथ उड़ी और उकड़ू बैठे आदमी के सिर को छूती निकल गयी । आदमी जले हुए ढेर को घूरता रहा - देर तक: धुनता रहा अपना सिर । फिर उठा और छाती पीट-पीट रोने लगा । रोने के साथ उसके मुँह से अजीब आवाज निकल रही थी, जैसे हिचकियों में उसकी साँस बार-बार फँस रही हो । जब रोत-रोते वह थक गया तो गाली बकने लगा -- गंदी-गंदी : धारा प्रवाह । उसका चेहरा पूर्व मुख्यमंत्री के बंगले की ओर था और पीठ उन छ: पुतलों की ओर जो शुरु से उसे देख रहे थे और उसके लिए दया और सहानुभूति से भरे हुए थे । उस आदमी की गालियाँ, मुँह से बाहर आते ही पालिथीन थैलियाँ और खाली डिब्बों में बदलकर, हवा के साथ उड़, पूर्व मुख्यमंत्री के बंगले के ऊपर गिर रही थीं । सिविल लाइन्स स्क्वैअर उसकी गालियों से भर रहा था । आते-जाते लोग ठिठकने लगे थे । बस उन छ: पुतलों को उस आदमी की गालियाँ नहीं छू रही थीं । गालियाँ जैसे ही पुतलों को छूती तुरन्त पानी में बदल जाती थीं । उस आदमी के आस-पास साइकिल सवारों और मजदूरों की अच्छी-खासी भीड़ अब इकट्ठा हो चुकी थी । ये वे लोग थे जो सुबह काम पर निकले थे और जिन्हें शाम को थककर वापस लौटना था । वह आदमी भीड़ को नहीं देख पा रहा था । बंद ऑंखों से वह पूर्व मुख्यमंत्री के बंगले को देख रहा था : बक रहा था वह सिर्फ बंगले को गाली । अचानक सिपाही उस आदमी पर टूट पड़े । उनके हाथ-लात एक साथ चलने लगे । बहुत देर तक तीनों सिपाहियों के बूट उस आदमी की देह पर बजे । सिपाही बारी-बारी से उसके सिर के लंबे, गंदे और उलझे बालों को पकड़, उसकी देह को घुमा रहे थे । सिपाही उस आदमी से भी यादा गंदी गालियों में डूब रहे थे । सिपाही जब उसे पीटते-पीटते थक गए तो वह आदमी उठा -- लड़खड़ता । उसकी नाक से खून गिर रहा था -- टप-टप । पीठ कोहनियाँ, घुटने और चेहरा छिल गया था । वह काला आदमी अब लाल धब्बों से भरा था । वह अब भी सिपाहियों को नहीं, बंगले को घूर रहा था, जैसे बंगले ने आकर उसे पीटा हो और फिर वापस जाकर अपनी जगह खड़ा हो गया हो । एक सिपाही ने उसे धकेला, चल भाग यहाँ से । वह आदमी कुछ पीछे हटा ..... फिर कुछ कदम और .... फिर सिपाहियों ने उसकी पीठ देखी नंगी और काली पीठ जिससे खून छलक रहा था । पीठ उस आदमी के चेहरे की तरह दिख रही थी । सिपाहियों ने और वहाँ ख्रड़ी भीड़ ने -- किसी पीठ को चेहरा बनते पहली बार देखा था । सिपाही, काली पर लाल धब्बों भरी उस पीठ के घूरने की हद के भीतर थे : बेचैन वह आदमी अपने गायब होने के कुछ घंटों बाद -- जब सूर्य बस डूबने वाला था, फिर चौराहे पर प्रकट हो गया । इस बार वह सीमेंट के छ: पुतलों के बीच खड़ा था । पूर्व मुख्यमंत्री का बंगला, रात्रि की चहल-पहल से पहले के मौन में डूबा हुआ था । गेट पर खड़े सिपाहियों ने उस आदमी को चौराहे के गोल घेरे पर चढ़ता देख लिया था, पर उन्होंने अपना ध्यान, जानबूझकर उस से हटा लिया । उनकी डयुटी उस आदमी के लिये ही गेट पर लगी थी । वह आदमी जब गेट के सामने आएगा तो सिपाही उसे देखेंगे । ये वहीं तीन सिपाही थे जो कुछ घंटे पहले, उस आदमी की पीठ को चेहरा बनते देख चुके थे । उस रात सीमेंट के छ: पुतलों की बीच खड़ा वह आदमी, लगातार पूर्व मुख्यमंत्री के बंगले की ओर घूरता रहा -- गुस्से से । वह रात में हुई बंगले की चहल-पहल को घूरता रहा । वह अंधेरे में डूबे बंगले को घूरता रहा , जो चहलपहल के बाद थककर सोया - सा लग रहा था । उस आदमी के इस तरह बंगले को लगातार घूरने का असर, सीमेंट के उन छ: स्त्री-पुरूषों के पुतलों पर भी हुआ । सीमेंट के वे छ: पुतले पहली बार अपनी जगह से हिले । उनके जमीन पर घँसे पैर खुल गये । पहली बार पुतलों ने अपने देखने की दिशा बदली । वे उस आदमी के दर्द के छ: गवाह थे जो अब उनके बीच खड़ा था, बंगले को घूरता । सुबह हुई तो उस चौराहे पर, सीमेंट के छ: पुलतों की जगह, अब सीमेंट के सात पुतले थे और सातों पुतले पूर्व मुख्यमंत्री के बंगले की ओर घूर रहे थे 
 .... आनंद हर्षुल 09425208074 anand_harshul@yahu.co.in

गुरुवार, 30 जून 2011

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आधा सच...: बाबा रे बाबा... ऐसा सत्याग्रह ?

आधा सच...: बाबा रे बाबा... ऐसा सत्याग्रह ?: "मित्रों , बाबा रामदेव ने देश को धोखा दिया। तीन जून को ही बाबा ने सरकार के साथ समझौता कर लिया था। रामदेव कल तक ड्रामा कर रहे थे कि 90 फी..."

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मंगलवार, 28 जून 2011

आनंदमठ

आनंदमठ - उपन्यास (बंकिम चंद्र)


सन १८८२ में प्रकाशित बंकिम चंद्र चटोपाध्याय द्वारा लिखित यह उपन्यास भारतीय इतिहास के उन दुर्लभ दस्तावेजोंमें से एक है जिन्होंने समाज को एक नई दिशा देने का काम किया। इस उपन्यास को सन्यासी आन्दोलन और बंगाल अकाल की छाया में लिखा गया है।

आनन्द मठ बांग्ला भाषा का एक उपन्यास है जिसकी रचना बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने १८८२ में की थी। इस कृति का भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम और स्वतन्त्रता के क्रान्तिकारियों पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। भारत का राष्ट्रीय गीत वन्दे मातरम् इसी उपन्यास से लिया गया है। आनंदमठ राजनीतिक उपन्यास है। इस उपन्यास में उत्तर बंगाल में 1773 के संन्यासी विद्रोह का वर्णन किया गया है। इस पुस्तक में देशभक्ति की भावना है।

शनिवार, 11 जून 2011

अभिभूत हैं अमिताभ

लव का द एण्ड : ताजगी तो है लेकिन सुगंध नहीं


कलाकार : श्रद्धा कपूर, ताहा शाह, शहनाज ट्रेजरीवाला, अर्चना पूरणसिंह
निर्माता : आशीष पाटिल
निर्देशक : बंपी

इस सप्ताह आई निर्देशक बंपी की लव का द एण्ड एक ऎसी फिल्म है जिसमें ताजगी का अहसास तो होता है लेकिन उस ताजगी में सुगन्ध का अभाव साफ महसूस किया जा सकता है।> एमटीवी पर बतौर निर्माता निर्देशक काम कर चुके नौजवान निर्देशक बंपी ने अपनी फिल्म के लिए जो प्लाट चुना है वह भी एमटीवी के कार्यक्रमों जैसा ही है। जहां सब कुछ बहुत जल्दी में हो जाता है और> यही जल्दी कई जगह पर अखरने लग जाती है। बम्पी ने अपनी फिल्म का प्लॉट आज के जनरेशन के हिसाब से रखा है। ट्रीटमेंट भी उन्होंने इसका फेसबुक जनरेशन के हिसाब से किया है। लेकिन इन सबके के बावजूद यह फिल्म अपनी कमजोर कथा और पटकथा के कारण दर्शकों को उबाउ लगने लग जाती है। बॉलीवुड में आदित्य चोप़डा को मार्केटिंग का उस्ताद माना जाता है। कहा जाता है कि जिस गति से युवाओं की सोच बदल रही है, उसी गति से आदित्य की नजर बदलते सामाजिक परिवेश को पक़ड लेती है। इसी के मद्देनजर उन्होंने अपने स्थापित बैनर यशराज फिल्म्स के अन्तर्गत एक नया बैनर वाई बैनर बनाया है जिसमें वे युवाओं को केन्द्र में रखकर फिल्मों का निर्माण करेंगे। इस बैनर तले युवाओं की फिल्म, युवाओं द्वारा युवाओं के लिए की विचारधारा का समामेल होगा अर्थात् यह बैनर केवल युवाओं के हाथ में होगा। एक अनुमान के> मुताबिक भारतीय सिने दर्शकों में 16 से 30 वर्ष के दर्शकों का अनुपात अन्य देशों के मुकाबले कहीं ज्यादा है। इसी को दृष्टिगत रखते हुए वाई बैनर के तले आई पहली फिल्म लव का द एण्ड देखकर यह अनुमान सहजता से लगा कि यह सिर्फ और सिर्फ युवाओं के लिए है।

भारतीय सिनेमा में कॉलेज स्टूडेंट्स की जो छवि परदे पर पेश की जाती है ऎसा एक भी कॉलेज हमें वास्तविकता में कहीं नहीं दिखता है। वर्तमान में जरूर अब कुछ कॉलेज परदे पर दिखाए जाने वाले कॉलेज की छवि को अपने यहां पर प्रदर्शित करने का प्रयास कर रहे हैं। इस फिल्म के नौजवान निर्देशक बम्पी ने कथानक का तानाबाना कॉलेज की मौज मस्ती का रखा लेकिन जल्द ही वे इस कथानक से उतर कर नायिका द्वारा नायक को सबक सिखाने की लाइन पर आ जाते हैं। इस में वे ऎसे उलझे कि उन्हें कहानी को खत्म करने का कोई रास्ता ही दिखाई नहीं दिया। इसलिए जब फिल्म खत्म होती है तो एक सवाल मन में उभरता है क्या यही है आजकल की पढ़ाई का माहौल। यह सही है कि कॉलेज में मौज मस्ती होती है लेकिन आजकल के कठिन प्रतियोगी नजर में शायद ही युवा इस प्रकार की हरकतें कॉलेज में करते होंगे। फिल्म की कहानी रिया (श्रद्धा कपूर) के इर्द गिर्द घूमती है। रिया कॉलेज में पढ़ने वाली एक सामान्य ल़डकी है। वह कॉलेज के एक ल़डके लव नन्दा (ताहा शाह) को प्यार करती है। लव नन्दा के ऊपर कॉलेज की कुछ अन्य ल़डकियां भी मरती हैं। अपने करो़डपति बाप के पैसे पर वह आए दिन पार्टियों का आयोजन करता है और ल़डकियों को अपनी ओर आकर्षित करने में उस पैसे का दिल खोलकर इस्तेमाल करता है। उसकी नजर में ल़डकी सिर्फ सैक्स का मजा लेने का एक माध्यम है। बार-बार के इस आग्रह पर रिया लव के साथ हम बिस्तर होने को तैयार हो जाती है लेकिन उससे पहले ही उसे लव की असलियत का पता चल जाता है।

इस बात को जानने के बाद वह अपनी सहेलियों के साथ मिलकर लव को उसकी करतूतों की सजा देती है। हॉलीवुड की फिल्म जॉन टूकर मस्ट डाई पर आधारित लव का द एण्ड कथानक के लिहाज से बेहद उबाऊपन लिए हुए हैं। निर्देशक बंपी ने कथानक तो वहां से चुरा लिया लेकिन वह उसके साथ उस तरह का ट्रीटमेंट नहीं कर पाए हैं। उन्होंने कथानक में जो बदलाव भारतीयता के नाते किए हैं वे पूरी तरह से निराश करते हैं। निर्देशक बम्पी ने पूरी फिल्म को श्रद्धा कपूर के कंधों पर छो़डा है। बॉलीवुड के खलनायक रहे शक्ति कपूर की बेटी श्रद्धा कपूर ने यहां अपनी पहली फिल्म तीन पत्ती से ज्यादा प्रभावित किया है। चूंकि निर्देशक ने पूरे समय कैमरा उन्हीं पर फोकस किया है जिसका उन्होंने लाभ उठाने का प्रयास किया है। लेकिन वे इस अवसर को पूरी तरह से भुनाने में सफल नहीं हो पाई हैं। ताहा शाह द्वारा निभाए गए लव नन्दा के किरदार पर लेखक व निर्देशक बम्पी ने ज्यादा मेहनत नहीं की है। वे चाहते तो इस किरदार पर मेहनत करके उसे और मजबूती के साथ पेश कर सकते थे। इसके बावजूद वे प्रभावित करते हैं। इन दोनों कलाकारों पर बाजी मारी है श्रद्धा कपूर की सहेली बनी मोटी सहेली पश्ती एस. ने। सोनी चैनल पर हर वक्त पूरा मुंह खोल कर जोर-जोर हंसने वाली अर्चना पूरण सिंह ने यहां भी यही किया है।

उन्होंने सिवाय चिल्लाने और आंखें फ़ाडकर देखने को ही अभिनय मान लिया है। इस बैनर द्वारा यह दावा किया जा रहा है कि यह फिल्म 16 से 25 वर्ष के युवाओं को बेहद पसन्द आएगी लेकिन फिल्म देखने के बाद हमें उनका यह दावा खोखला लगा। हां कुछ प्रतिशत जरूर ऎसे युवा फिल्म देखते हुए मिले जिन्हें इस फिल्म ने बहुत प्रभावित किया है। लेकिन यह प्रतिशत इतना कम है जिसके सहारे सफलता पाना बेहद मुश्किल है। फिल्म का तकनीकी पक्ष सामान्य है। अर्थात् फिल्म की फोटोग्राफी, गीत-संगीत व सम्पादन औसत दर्जे का है।

फिल्म का संगीत राम सम्पत का जिन्होंने इससे पहले खाकी का संगीत दिया था। एक अरसे बाद उन्होंने इस फिल्म के जरिए वापसी की है। उनके द्वारा संगीत बद्ध तीन गीत टू नाइट, फन फंडा और मटन सांग परदे पर देखते वक्त तो आकर्षक लगते हैं लेकिन गीत के बोल और धुनें ऎसी नहीं हैं जो लम्बे समय तक याद रखी जा सकें। आदित्य चोप़डा द्वारा स्थापित यह बैनर सिर्फ उन लोगों को सन्तुष्ट कर सकता है जो पैसे के बल पर फिल्म बना सकते हैं लेकिन निर्माण सामग्री नहीं जुटा सकते। ऎसे लोगों के लिए यह बैनर अच्छा प्लेटफार्म साबित होगा। हो सकता है अपवाद के तौर पर कभी इस बैनर से कोई अच्छी फिल्म निकल आए। फिलहाल तो उनका यह पहला प्रयास स्तरहीन है।


हांटेड : कहानी में पिछ़डे, तकनीक से डराने में कामयाब

फिल्म समीक्षा
कलाकार : महाअक्षय, टिया बाजपाई, अंचित कौर, आरिफ जकारिया, संजय शर्मा
निर्देशक : विक्रम भट्ट

राज की अप्रत्याशित सफलता ने विक्रम भट्ट को जो स्थान दिलाया था वह उसे निरन्तर जारी नहीं रख पाए। लेकिन 2009 में आई उनकी 1920 की सफलता ने यह साबित किया कि वर्तमान में हॉरर फिल्मों को उनसे अच्छा और कोई निर्देशक नहीं बना सकता। लेकिन इस शुक्रवार प्रदर्शित हुई हांटेड को देखने के बाद यह साफ हो गया कि इस प्रकार की फिल्मों में तकनीक के साथ-साथ सशक्त कथा पटकथा का होना भी बेहद जरूरी है।
यह सही है कि हांटेड भारत की पहली ऎसी हॉरर फिल्म है जो 3डी में बनाई गई। हालांकि 3डी में कुछ ही प्रिंट जारी किए गए हैं। डरावनी फिल्मों की परम्परा के अनुसार हांटेड की कहानी भी एक बंद हवेली से शुरू होती है। जिसके बारे में कहा जाता है कि इस पर आत्माओं का साया है। फिल्म के नायक के साथ इस भुतहवा बंगले की कहानी आगे बढ़ती है और धीरे-धीरे राज खुलते जाते हैं। हॉरर फिल्म की सबसे ब़डी जरूरत भयानक दृश्य भी इस बीच चलते रहते हैं। डरावनी फिल्मों के लिए जरूरी है कि वह अन्त तक दर्शकों को बांध कर रख सके लेकिन हांटेड इस स्तर की फिल्म नहीं है। यहां मध्यान्तर से पहले जरूर कुछ ऎसे दृश्य हैं जिनसे क्षण भर को सिरहन पैदा होती है लेकिन मध्यान्तर के बाद यह एक सामान्य फिल्म रह जाती है। 3डी प्रिंट से बच्चों को जरूर मजा आएगा।


कहानी के स्तर पर विक्रम भट्ट जहां मात खा गए हैं वहीं तकनीक के स्तर पर उन्होंने जरूर कुछ कामयाबी पाई है। बॉलीवुड के बंगाल टाइगर मिथुन चक्रवर्ती ने अपने बेटे मिमोह को चार साल पहले जिम्मी के जरिए परदे पर पेश किया था। जिम्मी कब आई और गई पता नहीं चला लेकिन विक्रम भट्ट की हांटेड से उनके पुत्र मिमोह ने नाम बदल कर महाअक्षय के रूप में फिर से बॉलीवुड में कदम रखा है। नाम बदलने से ही बॉलीवुड में किस्मत चमकती तो हर व्यक्ति आज बॉलीवुड में होता।

महाअक्षय की संवाद अदायगी बेहद खराब है इसके साथ ही उनके चेहरे पर किसी प्रकार का भाव नहीं आता है। जिस तरह की फिल्म है उसके अनुसार उनके चेहरे पर खौफ का साया दिखाई देना चाहिए था लेकिन ऎसा कुछ नहीं है। नृत्य में जरूर वे प्रतिभाशाली लगे। उनकी इस खासियत की वजह से विक्रम ने एक आइटम सांग उन्हीं पर फिल्माया है, जो देखकर लगता है कि यह जबरदस्ती डाला गया है। छोटे पर्दे से आई टि्वंकल बाजपेयी ने उम्मीद जगाई है। डर को दिखाने में फिल्म के बैक ग्राउण्ड म्यूजिक का बहुत ब़डा हाथ होता है जिसका यहां अभाव नजर आता है। फिल्म का छायांकन स्तरीय है लेकिन सम्पादन ढीला है। मध्यान्तर के बाद फिल्म में कसावट का अभाव साफ नजर आता है। परीक्षाओं के तनाव से मुक्त हो चुके युवा वर्ग को तकनीक के सहारे यह फिल्म जरूर प्रभावित कर सकती है लेकिन कमजोर कथानक के कारण जल्द ही बोरियत हो जाती है।


सोनाक्षी सिन्हा को भाए रणवीर सिंह

मुम्बई। गत वर्ष की सफलतम फिल्म रही दबंग के जरिए बॉलीवुड में प्रवेश करने वाली नायिका सोनाक्षी सिन्हा को बॉलीवुड के नए सितारे रणवीर सिंह कुछ ज्यादा ही भाने लगे हैं। इन दोनों सितारों ने वर्ष 2010 में एक साथ बॉलीवुड में प्रवेश किया है।
दबंग की नायिका के रूप में सोनाक्षी ने हर प्रकार के फिल्म पुरस्कार में दखलंदाजी की वहीं यशराज फिल्म्स की बैंड बाजा बारात के जरिए बॉलीवुड में धमाकेदार प्रवेश करने वाले रणवीर ने भी पुरस्कार समारोहों में अपने नाम का डंका बजवाया। रणबीर में सोनाक्षी सिन्हा की रूचि का एक विशेष कारण नजर आता है। अपनी पहली फिल्म में उन्होंने 45 वर्षीय सलमान खान के साथ और करियर की दूसरी फिल्म जोकर में 46 वर्षीय अक्षय कुमार के साथ काम किया है जो उनकी उम्र से दोगुने हैं।
इन सितारों के साथ बॉलीवुड में प्रवेश तो अच्छा हो गया लेकिन करियर को चलाना है तो अपनी हमउम्र नायकों को पक़डना प़डेगा। इन नायकों का तो करियर अब अपनी ढलान पर है। हम उम्र नायकों के लिए उनकी नजर में रणवीर से बढि़या और कोई नहीं है। वे रणवीर के अभिनय से भी खासी प्रभावित हैं। इसलिए उनकी इच्छा है कि वे अपनी अगली में रणवीर की नायिका बनें। देखना यह है कि पितातुल्य नायकों के साथ कमर मटका चुकी सोनाक्षी की यह हसरत कौन सा निर्माता पूरी करता है।


जानवरों को बचाने के लिए कविता हो गई न्यूड

मुंबई। टेलिविजन अदाकारा कविता राधेश्याम ने जानवरों को बचाने के लिए न्यूड सीन दिए। उन्होंने यह न्यूड सीन एक अभियान के तहत दिए है। कविता ने कहा कि मैंने न्यूड सीन इसलिए दिए है क्योंकि भारत में कुछ जगहों पर जानवरों के प्रति हो रहे क्रुर व्यवहार के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए यह कदम उठाया है।
न्यूड सीन में कविता ने अपनी पीठ पर "सेव टाईगर" लिखा है। कविता के अनुसार उसने यह पोज जानवरों के प्रति हो रहे क्रूर व्यवहार से लोगों को अवगत कराने के लिए दी है। उन्होंने बताया कि पांच घंटे में करो़ड और ओम अल्लाह में काम करने वाले कलाकारों ने भी इस मुहिम के लिए न्यूड पोज दिए है। हालांकि कविता विक्रम भट्ट के आने वाले टीवी सीरीज हू डन इट उलझन में काम कर रही है।

Kavita RadheshyamKavita Radheshyam

अभिनेत्री ने झूठ बोला, हो गई एक माह की जेल


लास एंजेलिस। अदालत में झूठ बोलना कितना महंगा प़ड सकता है, यह अमेरिका की एक अदालत के एक फैसले से जाहिर है जहां सुनवाई के दौरान मेक्सिको की अभिनेत्री फर्नाüडो रोमेरो का झूठ पक़डागया और उसे एक महीने के कारावास की सजा सुना दी गई।
रोमेरो पर अमेरिका में कानूनी दर्जा प्राप्त करने के लिए फर्जी शादी रचाने का आरोप था। संघीय न्यायाधीश मैनुअल रियल ने रोमरो और उनके पति केंट रॉस को लगातार 15 हफ्ते तक सप्ताहांत जेल में गुजारने का आदेश सुनाया है जो 24 जून से शुरू होगा। इसके अलावा अभिनेत्री को एक हजार घंटे सामुदायिक सेवा करनी है।
रोमेरो के वकील माइकल नसातीर ने जारी बयान में कहा कि रोमेरो अदालत के इस फैसले से बेहद निराश हैं लेकिन वह इसका पालन करेंगी। गलत जानकारी मुहैया कराने का दोषी पाये जाने पर रोमेरो और उनके पति को अधिकतम पांच साल की सजा भुगतनी प़डती।
रोमेरो और उनके पति ने गलत जानकारी देने की बात स्वीकार कर ली। उन दोनों ने 2005 में शादी की थी लेकिन कभी भी एक साथ नहीं रहे। इस शादी के एक महीने बाद ही रोमेरो ने फोटोग्राफर मारकोस क्लिंको से दोस्ती बढ़ा ली। रोमेरो और क्लिंको के अलग होने पर फोटोग्राफर ने अमेरिकी आव्रजन विभाग को रोमेरो के बारे में सारी जानकारी दे दी।

शीघ्र उत्तेजित हो जाते हैं मेष राशि वाले मेष राशि वाले
आपकी कुंडली का सबसे बुनियादी घटक आपकी सूर्य राशि होती है। यह वह राशि है जो आपके जन्म के समय सूर्य द्वारा अपना ली जाती है। सूर्य राशि की मदद से आप अपनी पूरी कुंडली की जांच करके अपने व्यक्तिव का वर्णन कर सकते है। इसकी मदद से आप अपनी यौन आदतों और वरीयताओं के बारे में जान सकते है।
सूर्य के अनुसार बारह राशियों होती है (मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ तथा मीन) आज हम आपको इन 12 राशियों की यौन आदतें उनकी वरीयताएं तथा उनकी अन्य राशियों के साथ अनुकुलता की विस्तृत जानकारी दे रहे है।
मेष (मार्च 21-अप्रैल 20) : यौन-बिस्तर में भी आवेगी प्रवृति के होते है। इन्हें विजय होना पंसद होता है इसलिए यह प्यार और सेक्स दोनों में ही पहल करते है। यह यौन क्रीडाओं से जल्दी उत्तेजित हो जाते है और उतनी ही जल्दी थिथल भी हो जाते है, परन्तु इन्हें जल्दी ही सेक्स के लिए पुन: तैयार किया जा सकता है। इन्हें तीखा और रोमांचक सेक्स पसंद होता है। नये-नये सेक्स प्रयोगों व यौन क्रीडाओं के प्रभाव में यह एक अच्छे हमबिस्तर साबित होते है।
अन्य राशियों के साथ अनुकूलता :
मेष-मेष : मेष राशि का स्वामी मंगल ग्रह है जो कि जुनून व स्वभाव का ग्रह कहलाता है इसलिए समान राशि के होने के कारण इनमें आपस में एक तीव्र यौन आर्कषण होगा। आप दोनों एक दूसरे को सेक्स का पूर्ण आनन्द देने की क्षमता रखते है अर्थात कोई किसी से कम नहीं है, इसलिए एक रोमांचक सेक्स के लिए आप बेहतर साथी साबित होगें। अगर आप अपने आक्रमक व्यवहार पर थोडा नियत्रण कर ले तो संगतता कुंडली के आधार पर आप दोनों एक बेजोड मेल हो सकते है तथा साथ में प्रतिष्ठावान व सुनहरा भविष्य बना सकते है।
मेष-वृषभ : यह दोनों ही पशेनेट राशियां होती है। परतुं यौन संबंधों में इनके विचार विपरीत होते है, मेष राशि वाले को यहां जल्दी-जल्दी और वाइल्ड सेक्स पसंद होता है वही वृषभ राशि वाले धीरे-धीरे व देर तक सेक्स पसंद करते है। यौन संबंधों के दौरान मेष राशि अपनी शारारिक व कार्य क्षमता तथा वृषभ राशि अपनी सहज सेक्स भावनाओं को सम्मलित करते है। दुर्भाग्यवश यह लंबे समय के लिए अच्छा नहीं है, परंतु इन्हे एक साथ बिताया समय हमेशा याद रहता है।
मेष-मिथुन : यह दोनों कम से कम यौन-बिस्तर पर साथ होना बहुत पसंद करते है। यह दोनों सक्रिय राशियां है जो यौन-संबंधी प्रयास करती है। हालाकि संबंध बनाते वक्त मेष राशि वाले अहम भूमिका निभाते है परंतु उनके लिए उपयुक्त माहौल तैयार करने में मिथुन राशि का सहयोग अनिर्वाय होता है। संगतता कुंडली के अनुसार इनके बीच सेक्स बहुत रोमांचक होगा तथा साथ मिलकर एक अच्छे परिवार की रचना करेंगे।
मेष-कर्क : इन दोनों में एक मजबूत सेक्स ड्राइव की विशेषता होती है। जहां मेष राशि वाले, कर्क राशि वालों को प्यार में सेक्स का एक अलग ही अनुभव कराते है वहीं कर्क राशि वाले प्यार में भावनाओं की सुरक्षा दर्शाता है। परंतु इनका संबंध अक्सर केवल सेक्स पर ही टिका होता है इसलिए संगतता कुंडली के अनुसार इन दोनों का रिश्ता असल में एक तूफान की तरह होगा जिसमें शादी को संभालना भंवर में फंसे जहाज का नेतृत्व करने जैसा होगा।
मेष-सिंह : दोनों में ही प्रबल सेक्स ड्राइव की इच्छा होती है, जिसे बेडरूम में और भी अधिक बडावा मिल जाता है। सिंह राशि वालों को अच्छे शब्द व तारीफ उत्तेजित करते है। इनका रोमांस भी काफी रोमांचक होता है। मेष राशि के यौन-संबंधों में नेतृत्व करने के स्वभाव से इनके प्यार और सेक्स में दिक्कते आ सकती है, इसलिए सिंह राशि को इस पर थोडा अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होती है, संगतता कुंडली के अनुसार यौन संबंध अच्छे बन सकते है तथा रिश्ता काम कर सकता है परंतु इसके लिए इन्हे जल्दी ही अपने रिश्ते को सीमाओं में बांधने की आवश्यकता होती है।
मेष-कन्या : मेष राशि वालों को कन्या राशि का चातुर्य, संयम और आत्मनियत्रंण प्रसन्न करता है तथा कन्या राशि, मेष राशि वालों के साहस से प्रभावित होती है परंतु साथ ही साथ मेष राशि का यौन संबंधों में जल्दबाजी करने का स्वभाव इन्हे हैरान भी कर देता है। इन दोनों में यौन और रोमांटिक संगतता ज्वालामुखी के समान होती है। संगतता कुंडली के अनुसार प्यार और सेक्स के लिए अच्छा संगम है परंतु शादी की सफलता का प्रतिशत आधा ही है।
मेष-तुला : इन दोनों में छोटी अवधि का रोमांस संभव है। नित नये सेक्स प्रयोगों के प्रति मेष राशि का अव्यधिक झुकाव, तुला राशि को आधात कर सकता है, क्योकि उच्च सैक्स ड्राइव होने के बावजूद तुला राशि, मेष राशि की तुलना में थोडी रूढिवादी होती है। संगतता कुंडली के अनुसार विवाह के लिए यह संयोजन उपयुक्त नहीं है।
मेष-वृश्चिक : इस संयोजन के लिए कोई पूर्वानुमान लगाना बहुत मुश्किल कार्य है। यह एक साथ बहुत खुश भी रहते है और अगले ही पल थोडे समय में अलग भी हो जाते है। यह दोनों बहुत अधिक सक्रिय राशियां है। दोनों में यौन-इच्छाएं कूट-कूट कर भरी होती परंतु इनके स्वभाव आपस में टकराते है। अगर यह अपने-अपने अहम को ताक में रखकर समझौता कर ले तो एक लंबे समय तक सुखी जीवन व्यतीत कर सकते है। संगतता कुंडली के अनुसार इनकी सेक्स प्रगाढता इनकी समझ और उससे बने रिश्ते पर निर्भर करती है।
मेष-धनु : निराशावादी, मायूस और खराब मूड जैसे विशेषताओं वाले धनु राशि के लोगों पर काबू पाने में मेष राशि वालों का आशावादी स्वभाव बहुत प्रभावशाली होता है। इन दोनों को यौन-बिस्तर में कुछ विसंगतियों का सामना करना पड सकता है। परंतु यदि एक साथी इन विसंगतियों पर काबू पा ले तो कुंडली के अनुसार दोनों मिलकर एक अच्छा परिवार बना सकते है।
मेष-मकर : जहां मेष राशि वाले स्वभाव से नये-नये सेक्स प्रयोग करने वाले होते है वही मकर राशि वालों को परमपरागत यौन-संबंध पसंद होता है। चूंकि मकर राशि वाले लंबे समय तक यौन क्रियाओं में का आनन्द उठाना चाहते है इसलिए मेष राशि का जल्दबाजी का स्वभाव इन्हे थोडा नाखुश करता है परंतु फिर भी मेष राशि का भावुक स्वभाव मकर राशि वालों को यौन-बिस्तर में अपनी ओर आर्कषित करने में सफल हो सकता है, इसलिए यदि ऎसा हो जाए तो इन दोनों में एक छोटे अवधि के रोमांस और बेहतर शादी की संभावना बढ सकती है।
मेष-कुंभ : इन दोनों में एक बहुत ही शानदार और संतोषजनक सेक्स वालों का यौन-बिस्तर से निष्क्रिय स्वभाव मेष राशि वालों के नेतृत्व की भावना को प्रोत्साहन देता है जिसके कारण ये दोनों मिलकर एक असमान्य और अद्भुत रोमांस की उम्मीद कर सकते है। संगतता कुंडली के अनुसार वैवाहिक जीवन सुखद होने के आसार बनते है।
मेष-मीन : मेष राशि, मीन राशि की सामाजिक चाहत और मदहोश कर देने वाली अदाओं के कायल होते है। मीन राशि वाले मेष राशि वालों को तुंरत उत्तेजित कर देने की क्षमता रखते है। इन दोनों में प्यार और सेक्स इच्छाओं को पूरी तरह दर्शाने की समझ होती है जिससे यह यौन संबंधों में रोमांच अनुभव करते है। संगतता कुंडली के अनुसार यह दोनों लंबे व प्यार भरे रिश्ते को निभा सकते है।












अभिषेक-ऎश्वर्या की शादी की सालगिरह पर अभिभूत हैं अमिताभ


नई दिल्ली। अभिषेक और ऎश्वर्या चार साल पहले 20 अप्रैल के दिन विवाह के बंधन में बंधे थे लेकिन अमिताभ बच्चन को आज भी ऎसा लग रहा है कि जैसे कुछ घंटे पहले ही उनके बेटे की शादी हुई है।
अमिताभ ने अपने ब्लॉग पर लिखा है,बुधवार को अभिषेक और ऎश्वर्या की विवाह की सालगिरह है। मैं कल्पना नहीं कर सकता कि उनके विवाह को चार साल हो गए। उनके विवाह का सारा उत्साह, मेहमानों की चहल-पहल, शादी की तैयारियों की यादें मेरे दिमाग में इतनी ताजा हैं कि लगता है कुछ घंटे पहले ही यह सब कुछ हुआ है।
अभिषेक और ऎश्वर्या अपनी अब तक की हर सालगिरह पर विदेश में छुियां मना रहे होते थे लेकिन इस बार अभिषेक अपनीे आने वाली फिल्म दम मारो दम के प्रचार में व्यस्त हैं। फिल्मोद्योग के दोस्तों ने बॉलीवुड की इस हसीन जो़डी को सालगिरह पर टि्वटर के जरिए शुभकामनाएं दी हैं। दक्षिण के अभिनेता राणा दग्गुबति और अभिनेता विवेक वासवानी ने अभिषेक, ऎश्वर्या> को बधाई दी है।

पुरूषों की उंगलियों में छिपा है महिलाओं को आकर्षित करने का राज और सेक्स अपील - mens fingers and


लंदन। एक शोध में पता चला है कि जिन पुरूषों की अनामिका उंगली उनकी तर्जनी उंगली से बडी होती है उन पुरूषों की तरफ महिलाएं ज्यादा आकर्षक होती हैं। यह शोध जिनेवा विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने किया।
शोध में पुरूषो का महिलाओं के साथ रिश्ते की सफलता और उनके हाथों के बीच गहरा संबंध पाया गया। शोध के अनुसार जिन पुरूषों की दूसरी उंगली से चौथी उंगली जितनी बडी होती है, वे पुरूष उतने ही अधिक आक र्षक होते हैं। शोध में पता चला है कि उंगलियों के बीच अनुपात का सेक्स हार्मोस से संबंध होता है। अनामिका उंगली का तर्जनी उंगली से बडा होना इस बात का संकेत देता है कि उसे गर्भ में अधिक टेस्टोस्टेरोन मिला है।

लंदन। ब्रिटेन की महिलाओं के ब्रेस्ट विश्व की अन्य इलाकों की महिलाओं की तुलना में बडे हैं। ये बात एक अध्ययन में सामने आ चुकी है। लेकिन ब्रिटेन में एक खास इलाका है जहां महिलाओं के ब्रेस्ट का साइज दुनिया की अन्य महिलाओ के मुकाबले सबसे बडे होते हैं। एक सर्वे के अनुसार ब्रिटेन के एसैक्स की रहने वाली महिलाओं के ब्रेस्ट अन्य इलाकों की महिलाओं के मुकाबले ज्यादा बडे होते हैं। इस सर्वेक्षण के मुताबिक देश के 10 इलाकों में जहां सबसे बडे साइज की ब्रा खरीदी जाती है, उनमें से 3 इस काउंटी में आते हैं।

नेहा धूपिया को है डियर फ्रेंड हिटलर से सफलता की उम्मीद


मुम्बई। "फंस गया रे ओबामा" में अभिनय के लिए तारीफ पाने के बाद अब अभिनेत्री नेहा धूपिया को अपनी अगली फिल्म "डीयर फ्रेंड हिटलर" के प्रदर्शन का इंतजार है। यह फिल्म अपने विवादास्पद विषय के चलते सुर्खियों में है।
राकेश रंजना कुमार के निर्देशन में बनी इस फिल्म के मई में क्रिकेट टूर्नामेंट इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के समाप्त होने के बाद प्रदर्शित होने की सम्भावना है। नेहा धूपिया ने हाल ही में दिए एक साक्षात्कार में कहा, ""मैं इस फिल्म को लेकर बहुत उत्साहित थी और इसमें मैंने खुद अपने सामने चुनौती रखी है।"" फिल्म में धूपिया ने ईवा ब्रॉन की भूमिका निभाई है और रघुवीर यादव एडोल्फ हिटलर के किरदार में दिखेंगे। फिल्म के बिना गीतों वाले अंतर्राष्ट्रीय संस्करण जर्मन, फ्रेंच और अंग्रेजी भाषा में प्रदर्शित होंगे।
धूपिया कहती हैं, ""मैं ईवा ब्रॉन की भूमिका में हूं जो हमेशा से रहस्यमयी रही है। यह निश्चित रूप से एक चुनौतीपूर्ण भूमिका है लेकिन मैं कह सकती हूं कि मैं अपनी आंखों से खुद को अभिव्यक्त करूंगी। मैंने इसके लिए क़डी मेहनत की है।"" वहीं दूसरी तरफ इस फिल्म के पटकथा लेखक और अभिनेता के तौर पर अपने करियर की शुरूआत करने जा रहे नलिन देव का कहना है कि यह फिल्म हिटलर समर्थक नहीं है बल्कि इसमें महात्मा गांधी के विचार और अहिंसा के जरिए किसी भी ल़डाई को जीतने में कैसे मदद करती है उस पर आधारित है। इस फिल्म के टाइटल के बारे में पूछे जाने पर उन्होने कहा कि यह टाइटल इसलिए दिया गया है कि फिल्म की कहानी गांधी के द्वारा एडोल्फ हिटलर को लिखे गए पत्र के इर्द गिर्द घूमती है जिसमें उन्होंने पूर्व नाजी शासक को डियर फ्रेंड हिटलर लिखकर सम्बोधित किया है। यह पहली ऎसी भारतीय फिल्म है जो हिन्दी के अलावा अंग्रेजी, जर्मन और फ्रेंच में बनाई गई है। अन्तर्राष्ट्रीय बाजार को देखते हुए इसके बिना गीतों वाले संस्करण को विदेशों में प्रदर्शित किया जाएगा।

शुक्रवार, 3 जून 2011

अरे ये क्या !

अरे ये क्या !
वेटिकन सिटी रोम में इटालियन प्रेसिडेंसी प्रेस ऑफिस के उपर से वायुसेना के 9 विमानों ने एक साथ उड़ान भरकर आसमान में सतरंगी रेखाएं खींच दी.

अरे ये क्या !
बीकानेर में धूल भरी तेज आंधी चली तो कबूतरों के एक झुंड ने सूखे दरख्त पर बैठकर अपनी जान बचाई.

अरे ये क्या !
चिकमंगलूर में अटखेलियां करता मोर, कुदरत से आस लगाए बैठा है.

अरे ये क्या !
आस पूरी हो गई, मोर की खुशी का ठिकाना ना रहा और वह खुशी की पगडंडी पर सवार होकर नाचने लगा.


अरे ये क्या !
अभिनेता अक्षय कुमार ने एक प्रोग्राम के लिए मुंबई में स्टंट कर सबको चौंका दिया.






गुरुवार, 2 जून 2011

कॉमेंट्स :


Manoj kumar Tiwari, Sector 82 noida का कहना है :
03/06/2011 at 11:17 am
बाबा राम देव जी आप से निवेदन है की हमारा हिन्दुस्तान को बचाओ इस देश से राजनीति ख़तम करो पूरे देश आप का अभारी रहेगा
MANJEET PATEL, MIRZAPUR का कहना है :
03/06/2011 at 11:13 am
बाबा आप इन नोटंकी वाले की बातो पर ध्यान न दे कर देश के हित के लिए अनसन पर बेठे हम आप के साथ है पहले अंग्रेज अब देश के नेता गरीबो को सता रहे है प्रधान मंत्री और न्याय पालिका को भी लोक पल के दायरे में आना जरुरी है
BHUPENDRA DADHICH, BHILWARA ,RAJASTHAN का कहना है :
03/06/2011 at 11:02 am
क़ाला धन आना चाहिये , अनशन क़े मंच पर ही आतंक़वादियो के फासी का आदेश आना चाहिये, वादे नही आदेश चाहिये
Rajeev Gehlot, pali rajasthan का कहना है :
हम आपके साथ है बाबा जी जय हिंद जय भारत
ar, kullu का कहना है :
टीवी चेनलोन पर परोसी जा रही असलीलता को भी इसी चार्टर मे शामिल कर लिया जाता तो अओर ज़यादा बहतेर होता यह आज की सबसे ज़्यादा ज्वलंत समस्या है जो हमारी पीढ़ियों को जिद्दी और उज्जदद बना रही है हमारे भाभी करन्धार अपने कंधो पर बुज़ुर्गो बो हाथ नहीं रखना चाहते क्यो की बहाँ से उन्हे जो नसीहतों का सामना करना पड़ता है यह सभी कुछ नेट व दूर्द्रशन पर परोसी जा रही समीग्री का प्रतिफल है बिगयपन में एस्टेमाल की जाने बलि भाषा ब चलचित्र क्या बनाने बाले भी अपने परिवार के साथ देख सकते हैं हो सकता फिल्मों के बारे में तो चुनने का अधिकार है की अमुक देखें या ना देखें पर टीवी पर परोसे जाने वाली समीग्री आपको देखनी ही पड़ेगी फिर चाहे आप समाचार ही क्यों न देखें .

आज किन शेयरों में खरीददारी करें, किनसे बचें | इस बारे में जानकारी दे रहे हैं मार्केट एक्सपर्ट्स। जानने के लिए यहां क्लिक करें| कमाएं- बचाएं: अपनी गाढ़ी कमाई का कैसे निवेश करें, जानने के लिए यहां क्लिक करें| बाबा के अनशन की तैयारियां अंतिम दौर में

रामलीला मैदान।। काले धन और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर 4 जून से शुरू होने वाले बाबा रामदेव के सत्याग्रह के लिए रामलीला मैदान में चल रही तैयारियां अब अंतिम दौर में हैं। एक तरफ रामलीला मैदान में जुटने वाले लोगों के ठहरने के लिए की जा रही व्यवस्थाओं को दुरुस्त किया जा रहा है, वहीं मैदान में लग रहे भव्य मंच, पंडाल व अन्य तैयारियों को भी अंतिम रूप दिया जा रहा है।

मैदान में अब चहल पहल भी बढ़ती जा रही है और देश के विभिन्न इलाकों के लोग यहां जुटने लगे हैं। अन्ना हजारे के अनशन के बाद इस सत्याग्रह को लेकर दिल्लीवालों में भी क्रेज बढ़ता जा रहा है। एक तरफ जहां दिल्ली में रहने वाले बाबा के अनुयायी और उनके संगठन से जुड़े तमाम लोग यहां व्यवस्थाओं की कमान संभाल रहे हैं, वहीं कई लोग रामलीला मैदान में लग रहे भव्य पंडाल को देखने भी आ रहे हैं।

इस बीच कई अन्य धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन भी बाबा रामदेव के सत्याग्रह को समर्थन देने के लिए आगे आए हैं। बुधवार को अखिल भारत हिंदू महासभा, अखिल भारतीय गोरक्षण समिति, अखिल भारतीय संत समिति और विश्व हिंदू परिषद समेत कई अन्य संगठनों के वरिष्ठ लोगों ने रामलीला मैदान पहुंचकर बाबा के सत्याग्रह का समर्थन करने की घोषणा की।

दिल्ली के सेंट एंजिल्स स्कूल की टीचर्स असोसिएशन की सेक्रेटरी आशा रानी के नेतृत्व में स्कूल की करीब 25-30 टीचर्स भी रामलीला मैदान पहुंचीं। आशा रानी ने बताया कि जिस वक्त अन्ना हजारे जंतर मंतर पर अनशन कर रहे थे, उसी दौरान वह भी स्कूल मैनेजमेंट की नीतियों के खिलाफ स्कूल के बाहर अनशन पर बैठी थीं। उन्होंने कहा कि हम खुद भी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं और इसलिए बाबा रामदेव के इस अभियान को अपना समर्थन देने के लिए यहां आए हैं।

उधर, रामलीला मैदान में व्यवस्था के स्तर किसी तरह की कोई कमी न रहे, इसलिए यहां चल रही तैयारियों का जायजा लेने के लिए बुधवार को मेयर रजनी अब्बी भी अपने पूरे दल-बल के साथ रामलीला मैदान पहुंची और तमाम व्यवस्थाओं की समीक्षा की।

उन्होंने कहा कि हम यहां साफ सफाई व बिजली पानी से जुड़ी व्यवस्थाओं पर विशेष ध्यान दे रहे हैं। एमसीडी के 100 से ज्यादा सफाई कर्मचारियों को यहां तैनात किया गया है। जोन के डिप्टी कमिश्नर भी अपने पूरी टीम के साथ यहां मौजूद रहेंगे और व्यवस्थाओं पर नजर रखेंगे। उन्होंने एमसीडी अधिकारियों को रामलीला मैदान में अतिरिक्त मोबाइल टॉयलेट्स के अलावा पानी के और टैंकर उपलब्ध कराने का आदेश भी दिया है।
उन्होंने बताया कि वैसे तो आयोजक यहां खुद का एक मेडिकल सेंटर बना रहे हैं, लेकिन मेडिकल इमरजेंसी की स्थिति में हम भी उनकी मदद के लिए तैयार रहेंगे। इसके अलावा 16 डॉक्टरों को भी यहां तैनात किया जाएगा, जो अलग अलग शिफ्टों में यहां ड्यूटी देंगे। फायर सेफ्टी के लिए भी पर्याप्त इंतजाम किए जा रहे हैं। मच्छरों से बचाव के लिए फॉगिंग मशीनें लगाई गई हैं।
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