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मंगलवार, 17 मई 2011

पर्दाफाश

रायपुर.प्रदेश की राजधानी रायपुर, कोरबा और रायगढ़ में छह डकैतियां डालने वाले गिरोह का रायपुर क्राइम ब्रांच ने मंगलवार को पर्दाफाश कर दिया। पुलिस ने गिरोह के सरगना सुबोधकांत सिंह समेत तीन सदस्यों को गिरफ्तार किया है। सभी बिहार के रहने वाले हैं। गिरोह ने मुंबई और कोलकाता समेत देशभर में 20 बैंक डकैतियों को अंजाम दिया है। रायपुर की तीन डकैतियों में शामिल गिरोह के तीन सदस्य अब भी फरार हैं। गिरोह चेन्नई की ज्वेलरी शॉप से पांच करोड़ रुपए के जेवरात लूटने की तैयारी में था।एसएसपी दिपांशु काबरा ने मंगलवार को पत्रकारवार्ता में बताया कि बिहार के नालंदा जिले के चिश्तीपुर का रहने वाला सुबोध गैंग का लीडर है। उसके साथ पुलिस ने धरमवीर कुमार (33) और मिथलेश उर्फ बल्ली यादव (30) को गिरफ्तार किया है। इन तीनों ने दिसंबर 2009 से अप्रैल 2010 के बीच शहर के सुंदरनगर स्थित सेंट्रल बैंक, पंडरी और उरला की स्टेट बैंक आफ इंडिया की शाखाओं में डकैतियां डाली थीं। आरोपी करीब 33 लाख रुपए लूटकर भाग गए थे। इसके कुछ महीने बाद रायगढ़ बैंक में धावा बोलकर गिरोह ने 76 लाख रुपए लूटे। अगले महीने कोरबा में भी डकैती की कोशिश के दौरान गोलीबारी में गैंग का एक सदस्य मारा गया। 15 दिन पहले मुंबई डकैती कांड में सुबोध गैंग का एक सदस्य छोटू खान पकड़ा गया। उससे पूछताछ में बाकी आरोपियों का पता चला। एडिशनल एसपी क्राइम अजातशत्रु बहादुर सिंह ने टीआई आरके साहू की एक टीम को तत्काल बिहार रवाना किया। छोटू की निशानदेही पर नालंदा और पटना जिले में दबिश दी गई। वहां पड़ताल में तीनों आरोपी अपने घरों से दबोचे गए। ज्वेलरी शॉप लूटने के लिए की रेकीसुबोध सिंह के गिरोह ने इसी महीने चेन्नई में एक बड़ी ज्वेलरी शॉप लूटने की प्लानिंग कर रखी थी। गैंग का प्रमुख सदस्य मिथलेश हाल ही में चेन्नई में जाकर ज्वेलरी दुकान की रेकी कर चुका था। इस वारदात में उनको पांच करोड़ रुपए से ज्यादा का माल मिलने की उम्मीद थी। गैंग ने वारदात की तैयारियों के लिए एक मकान भी खरीदा। मिथलेश ने योजना के हिसाब से दुकान का शटर और तिजोरी काटने के लिए गैस कटर तक खरीद लिया था। यह गिरोह की आखिरी वारदात होती। सुबोध और बाकी साथियों ने तय किया था कि वारदात के बाद मिली रकम को बांटकर सारे सदस्य दूसरे धंधों में चले जाएंगे।

लगी लगाई नौकरी के छूट जाने से किस्मत के दरवाजे भी खुल सकते हैं


चानक बोदूराम की लगी लगाई नौकरी छूट गई। वह बड़े भाई की जगह नौकरी लगा था। हालाँकि तब उस का बड़ा भाई जीवित था पर अस्वस्थ हो गया था। अस्वस्थता के बावजूद वह नौकरी करता रहा। वह पूरी ईमानदारी के साथ अपना कर्तव्य करता। मालिकान उस की कर्तव्य परायणता से प्रभावित थे, इतने कि एक बार तो मालिकान में से कुछ उसे जनरल मैनेजर बनाने का प्रस्ताव कर बैठे थे। वह तो उसी ने मना कर उन्हें संकट से उबार लिया था। लेकिन फिर घर वाले बहुत नाराज भी हुए, कि आखिर जनरल मैनेजर बनने का प्रस्ताव उसने क्यों ठुकरा दिया? बाद में वह खुद भी मानने लगा कि उस ने ऐसा कर के ऐतिहासिक गलती की थी। फिर एक दिन ऐसा आया कि उस की अस्वस्थता बढ़ने लगी। उसे कर्तव्य पूरा करने में परेशानी होने लगी। आखिर उस ने इस्तीफा दे दिया। उस ने पूरे तेईस साल तक कर्तव्य निभाया था। मालिकान ने उस की सेवाओं का कर्ज चुकाने को उस के भाई बोदूराम को उस की जगह नौकरी दे दी।

बोदूराम अपने भाई से कम हुनरमंद नहीं था। कुछ अधिक ही था। उस ने भाई वाला काम संभाल लिया। उस से बेहतर करने लगा। सब लोग उस की तारीफ भी करते। लेकिन उस का ध्यान केवल काम की और ही लगा रहता। वह किसी की न सुनता। धीरे-धीरे कंपनी के दूसरे अधिकारी, कर्मचारी नाराज रहने लगे। उस की शिकायत करने लगे। कोई भी काम खराब होता झट से उस के मत्थे थोप दिया जाता। वह समझ ही नहीं पाता कि आखिर उस से ऐसा क्या हुआ है जिस से हर बुरी चीज उस के मत्थे थोप दी जाती है। वह अपने खिलाफ आरोपों का जोरदार खंडन करता। अपने किए कामों की सूची गिना देता। उस का ध्यान इस और गया ही नहीं कि कंपनी में उस के खिलाफ माहौल बनाया जा रहा है। उस ने उस तरफ ध्यान ही नहीं दिया। लोग उस से अधिक से अधिक नाराज होने लगे। शिकायतें बढ़ने लगीं। वह इसी दंभ में फूला रहा कि जब वह सब कुछ ईमानदारी से कर रहा है तो उसे आँच पहुँचाने वाला कौन है?

खिर उस की शिकायतें इतनी हो गई कि पूरी कंपनी में खबर फैल गई कि इस बोर्ड मीटिंग के बाद उस का पत्ता साफ हो जाएगा। वह फिर भी कहता रहा कि उस का कुछ न बिगड़ेगा। लेकिन बोर्ड मीटिंग हुई, ऐसा नहीं था कि उस के समर्थन में लोग नहीं थे। लेकिन समर्थन का स्वर कमजोर पड़ गया और उसे निकाल दिया गया। उस ने भी मान लिया कि उसे निकाल दिया गया है, वह घर आ बैठा। अभी उस के घर पर मिलने वालों का ताँता लगा हुआ है, लोग उस के पास ऐसे आ रहे हैं जैसे किसी के घर स्यापा करने जाते हों। जो आता है वही अफसोस जताता है। कहता है गलती तो तुमने कुछ भी न की थी, बस षड़यंत्र का शिकार हो गए। उस की समझ में यह नहीं आ रहा है कि वह लोगों को क्या कहे?

ज सुबह उस के यहाँ एक आदमी आया और कहने लगा -तुम्हारी किस्मत सही थी जो तुम्हें नौकरी से निकाल दिया गया। एक तुम्हीं थे जो कंपनी को बरबाद होने से रोक रहे थे। कंपनी अब लाभ का सौदा नहीं रही है। मरी हुई लाश से पेट भरने वाले गिद्ध मंडराने लगे थे। तुम उन के मार्ग की रुकावट थे। तुम्हें निकाल दिया गया। अब मार्ग में कोई बाधा नहीं है। गिद्ध अपना पेट भर सकते हैं। तुम काबिल आदमी हो। यही एक काम नहीं है जिसे तुम कर सकते हो। तुम चाहो तो अपना काम खुद का काम कर सकते हो। अपनी खुद की कंपनी खड़ी कर सकते हो। पहले तुम्हारे भाई भी यही कहता था कि वह जरूर अपनी कंपनी खड़ी कर लेगा। लेकिन उस ने अपना जीवन कंपनी की सेवा में गुजार दिया। तुम्हें भी न निकाला जाता तो तुम भी यही करते। अब तुम्हें मौका मिला है तो आज से ही अपना काम शुरू कर दो। ऐसे बहुत उदाहरण हैं जिन्हें नौकरी से निकाला गया और वे अपना खुद का काम आरंभ कर के बहुत बड़ी हस्ती बन गए। जो नौकरी में रह गए वे पूरी जिन्दगी मालिकों की सेवा करते रहे, सेवक ही बने रहे। तुम चाहो तो खुद मालिक बन सकते हो। लगी लगाई नौकरी के छूट जाने से किस्मत के दरवाजे खुलने का अवसर सामने होता है।
बोदूराम को मिलने आया आदमी चला गया। लेकिन बोदूराम को विचलित कर गया। बोदूराम सोच रहा है क्या करे? वापस कहीं नौकरी पाने का यत्न करे या खुद का काम आरंभ करे।