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शनिवार, 17 सितंबर 2011

हम भारत के नौजबां, हालात हमी तो बदलेंगे..........
हम भारत के नौजबां, हालात हमी तो बदलेंगे,
उम्र से लम्बी स्याह काली, रात हमी तो बदलेंगे...........
गाँधी बहुत जरूरी हुए, हर काम को करने की खातिर,
... इनके बिना म्रत्यु पत्र भी, मिलता नही समय आखिर,
सच को भी सामने लाने को, जेबें ढीली करने होगी,
जो उनके मेरे मन में है, वो बात हमी तो बदलेंगे.......
हम भारत के नौजबां, हालात हमी तो बदलेंगे..........
सज्जन हमे रास ना आते, गुंडों के तलुवे चाटें,
भूखे को दाना नही, ताकतवर को रबड़ी खिलाते,
"सच का मुंह काला और झूठे का बोलबाला है",
दुनिया ना जो समझे, वो जज्वात हमी तो बदलेंगे........
हम भारत के नौजबां, हालात हमी तो बदलेंगे..........
हर हाथ तोड़ वो डालेंगे, उनको भ्रम बड़ा भारी,
सबको जूते से मसल देंगे, सत्ता के व्यापारी,
देश को जेल बनाने की, निज मन जिनने ठानी है,
उनके भ्रम भरे सारे ख्यालात हमी तो बदलेंगे........
हम भारत के नौजबां, हालात हमी तो बदलेंगे..........
नेता जो संसद में जा, बन बैठे भगवान हमारे,
क़ानून को जो जूती समझे, जनता को बेचारे,
सात पीड़ियों की खातिर, जो देश बेचने को तैयार,
ऐसे गद्दारों की, हर बात हमी तो बदलेंगे........
हम भारत के नौजबां, हालात हमी तो बदलेंगे..........

यही तो है ''माँ''

माँ मन्दिर नहीं होती
न ही भगवान
नहीं जाना पड़ता उस तक जूते उतारकर
माँ हमारा अपना कमरा है
जो राह देखता है
... ... साल भर / रात भर
हम चाहें लौटें या नहीं
और लौटकर
जूते पहने हुए ही पसर जाते हैं हम उसकी गोद में
और ज़माने भर का कीचड़
सुना देते हैं उस कमरे को
सने हुए कमरे
सुनती हुई माँएं
गुस्सा करते हैं कुछ देर
मगर कभी नाराज़ नहीं होते
नहीं फेर लेते चेहरा प्रेमिकाओं की तरह
नहीं कहते कि “तुम गन्दे हो, लौट जाओ”;

यही तो है ''माँ''