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शुक्रवार, 6 मई 2011

जय hind

युवाओं से आवाहन

उनका कर्ज चुकाने को,
अपना फर्ज निभाने को।
नया ख़ून तैयार खड़ा है,
राजनीति मेँ आने को॥

जागी अब तरुणाई है,
देश ने ली अंगडाई है।
नई उमर की नई फसल,
अब राजनीति मेँ आई है॥

जण गण मन अधिनायक,
जो है भाग्य विधाता।
लोकतंत्र के सिंहासन का,
असली मालिक मतदाता॥

किसी वाद पर दो मत ध्यान,
राष्ट्रहित मेँ दो मतदान॥
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एक सवाल

यहाँ पर राम बसता है,यहाँ रहमान बसता है
यहाँ हर ज़ात का,हर कौम का इन्सान बसता है
जो हिंदी बोलते है बस वही हिन्दू नहीं होते
वही हिन्दू हैं जिनके दिल में हिंदुस्तान बसता है
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सच्चा प्रेम दुर्लभ है, सच्ची मित्रता और भी दुर्लभ है। अहंकार छोडे बिना सच्चा प्रेम नही किया जा सकता।बिना अनुभव के कोरा शाब्दिक ज्ञान अंधा है।अहंकार छोडे बिना सच्चा प्रेम नही किया जा सकता...और...जिस प्रेम में अहंकार हो वो सच्चा प्रेम नहीं होता।
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रायपुर मदनवाड़ा के नक्सली हमले में जान गंवाने वाले शहीद एसपी वीके चौबे की पत्नी श्रीमती रंजना चौबे ने नक्सलियों से कुछ सवाल कर उन्हें कटघरे में खड़ा किया है। उन्होंने नक्सलियों से पहला पूछा है कि क्या आप वास्तव में मानव अधिकारों के हितैषी हैं? उन्होंने कहा है कि नक्सलियों को खून की हर बूंद का जवाब देना होगा। यहां जारी एक बयान में उन्होंने कहा है कि नक्सली हमलों से पुलिस वाले मारे नहीं गए बल्कि अमर हो गए हैं। इस शहादत से एक अमन व तरक्की पसंद समाज के निर्माण का रास्ता खुलता है।
श्रीमती चौबे ने पूछा है- अपने अधिकार पाने के लिए अराजक और बर्बर तरीके इस्तेमाल करने का हक आपको किसने दिया? आपके तरीके क्या आपको एक सभ्य और सुसंस्कृत समाज में रहने की इजाजत देते हैं? उन्होंने पूछा है कि नक्सलियों को सबसे पहले यह बताना होगा कि वे किसके लिए लड़ रहे हैं। अगर वे जनता के लिए लड़ रहे हैं तो अपने घोषणापत्र के साथ लोगों के बीच क्यों नहीं जाते?

उन्होंने नक्सलियों को याद दिलाया है कि वे आए दिन स्कूलों, अस्पतालों और दूसरे सरकारी भवनों को विस्फोट से उड़ा रहे हैं। ऐसा करके वे क्षेत्र की जनता को बुनियादी सुविधाओं से वंचित कर रहे हैं। किसी भी विकसित समाज की पहचान उसमें उपलब्ध मूलभूत सुविधाओं से होती है। इन सुविधाओं से जनता को वंचित करने वाले कैसे जनता के हितैषी हो सकते हैं? श्रीमती चौबे ने कहा है कि पुलिस की कोई अलग बिरादरी नहीं होती। पुलिस वाले जनता के बीच से आते हैं।

उन्हें मारकर नक्सली खुद को कैसे जनता के हितैषी कह सकते हैं? श्रीमती चौबे ने नक्सलियों से कहा है- आप इस गलतफहमी में मत रहिए कि आपने उन वीरों को मारा है। आपने तो उन्हें अमर कर दिया। उनकी शहादत तो ऐसे जीवन का आरंभ है जिसमें न कोई भय होगा न आप जैसे कायरों का अस्तित्व। यह ऐसे समाज की शुरुआत है जो अमन व तरक्की पसंद नागरिकों का सभ्य समाज होगा। जनता के बीच से आने वाले पुलिसकर्मियों की हत्या करने वाले नक्सली खुद को जनहितैषी कैसे कह सकते हैं?

अपनों का खून बहाकर कैसी क्रांति?

श्रीमती रंजना चौबे ने नक्सलियों से पूछा है कि वे खून क्यों बहा रहे हैं? उन्होंने कहा है कि अगर नक्सलियों द्वारा बहाए गए खून से समाज का अंशमात्र भी भला होता है तो उनके सभी खून माफ हो सकते हैं लेकिन नक्सली जैसे कायर लोग खून की कीमत नहीं जानते। उन्होंने कटाक्ष कर कहा है कि यदि नक्सली खून की कीमत जानते तो देश की सीमा पर जाकर खून बहाते ,अपने लोगों का खून बहाने वाले किस क्रांति की बात करते हैं ?

क्या ये नक्सली आम आदमी को मारके क्रांति लाना चाहते है ...?
या एसे नक्सली को कुत्ते की तरह मारे जाये ....?
अरे नक्सली सालो थू है तुम्हरी जिन्दगी पर ....!
दोस्तों आपकी क्या राये है नक्सली के प्रति ........?


krisna

यदि ऐसे हमारे जीवन के सारथि हो तो जीवन सुन्दर हो !

लादेन को दफनाने की जगह का नाम किया

'शहीद' सागर

ओसामा बिन लादेन को उत्तरी अरब सागर में जिस स्थान पर दफनाया गया है, उसे कट्टरपंथियों ने ‘शहीद सागर’ नाम दे दिया है। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के मुस्लिम धर्मगुरु अब्दल हकीम मुराद ने कहा कि अमेरिका की सुपुर्द-ए-आब (समुद्र में दफनाने) की नीति से वह खुद ही विवादों में फंस गया है।

रेडियो 4 के एक कार्यक्रम में मुराद ने कहा कि स्मारक बनने से बचाने के लिए लादेन को समुद्र में दफनाया गया, लेकिन अब कट्टरपंथियों ने उसे ही शहीद सागर नाम दे दिया है। अमेरिका उन्हें नहीं रोक सकता। दूसरी ओर, जमात-ए-इस्लामी से जुड़े वकीलों ने गुरुवार को पेशावर उच्च न्यायालय में अल-कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन के लिए ‘नमाज-ए-जनाजा’ पढ़ा।

‘इस्लामिक लॉयर्स मूवमेंट’ ने उच्च न्यायालय की लॉन में गुलाम नबी की अगुवाई में ‘गायबाना नमाज-ए-जनाजा’ पढ़ा। जमात-ए-इस्लामी से जुड़े करीब 120 वकीलों ने इसमें भाग लिया। इस दौरान वकीलों ने ‘अमेरिका के लिए मौत’ और ‘ओसामा जिंदाबाद’ जैसे नारे भी लगाए। नमाज-ए-जनाजा के बाद लादेन के लिए फातेहा भी पढ़ा गया।


ये है मेरा भारत..................
आखिर इनका स्वाभिमान कहां पर मर गया !

अपने बच्‍चों को आतंकी नहीं बनाना चाहता था


दुनिया का सबसे खूंखार आतंकवादी ओसामा बिन लादेन अपने बच्‍चों को आतंकवादी नहीं बनाना चाहता था। यह पढ़कर आपको हैरत होगी कि लादेन अपने बच्‍चों को किसी अच्‍छे स्‍कूल में तालीम दिलवाना चाहता था। उसे जीवन भर इस बात का मलाल रहा कि उसकी वजह से उसके बच्‍चों का भविष्‍य अंधकार में डूब गया। यह बातें हम नहीं कह रहे हैं। यह खुद ओसामा ने अपनी वसीयत में लिखा है।क्‍वैत के एक अखबार अल अल्‍माह ने अपने पास अबू अब्‍दुल्‍ला ओसामा बिन लादेन की वसीयत होने का दावा किया है। अखबार का दावा है कि चार पन्‍नों की इस वसीयत में लादेन ने अपने परिवार का जिक्र किया है। यह वसीयत ओसामा ने 14 दिसंबर 2001 को लिखी थी इस पर बाकायदा लादेन के हस्‍ताक्षर भी हैं। वसीयत के मुताबिक लादेन नहीं चाहता था कि उसके बच्‍चे आतंकवादी बने। वो यह भी नहीं चाहता था कि उसकी मौत के बाद उसकी पत्नियां दूसरी शादी करें। वो एक कट्टर मुसलमान था और ईश्‍वर को मानता था।

अब हजारों ओसामा पैदा होंगे....

पाकिस्तान में बिन लादेन की मौत का तीखा विरोध हो रहा है वरिष्ठ नेता हफीज फजल बारेच ने कहा कि अमेरिका के हाथों बिन लादेन की मौत के बाद हजारों बिन लादेन पैदा होंगे. उन्होंने कहा, "एक ओसामा शहीद हो गया है. अब हजारों ओसामा पैदा होंगे क्योंकि उसने मुसलमान विरोधी बलों के खिलाफ एक आंदोलन शुरू किया जो किसी एक शख्स पर निर्भर नहीं करता. अमेरिका ने पहले ओसामा को शहीद किया और फिर उसे लाश बताया." उन्होंने कहा कि अमेरिका के खिलाफ जिहाद जारी रहेगा.पाकिस्तान की सबसे बड़ी धार्मिक पार्टी जेयूआई ने देश भर में अमेरिकी अभियान की निंदा के लिए प्रदर्शनों का आह्वान किया है. क्वेटा में हुई रैली में लगभग डेढ़ हजार लोगों ने हिस्सा लिया. बिन लादेन की मौत के बाद पाकिस्तान में अमेरिका विरोधी भावनाएं प्रबल हो गई हैं. मुंबई हमलों के मास्टरमाइंड समझे जाने वाले हाफिज सईद से संगठन जमात-उद-दावा ने भी शुक्रवार को विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया है.