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सोमवार, 18 जुलाई 2011

कोई तुमसे पूछे ....

कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,

तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .

एक दोस्त है कच्चा पक्का सा ,
एक झूठ है आधा सच्चा सा .
जज़्बात को ढके एक पर्दा बस ,
एक बहाना है अच्छा अच्छा सा .
जीवन का एक ऐसा साथी है ,
जो दूर हो के पास नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .
हवा का एक सुहाना झोंका है ,
कभी नाज़ुक तो कभी तुफानो सा .
शक्ल देख कर जो नज़रें झुका ले ,
कभी अपना तो कभी बेगानों सा .
जिंदगी का एक ऐसा हमसफ़र ,
जो समंदर है , पर दिल को प्यास नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .
एक साथी जो अनकही कुछ बातें कह जाता है ,
यादों में जिसका एक धुंधला चेहरा रह जाता है .
यूँ तो उसके न होने का कुछ गम नहीं ,
पर कभी - कभी आँखों से आंसू बन के बह जाता है .
यूँ रहता तो मेरे तसव्वुर में है ,
पर इन आँखों को उसकी तलाश नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं

अनचाहे अनजाने पल

अनचाहे अनजाने पल.
   गये कहाँ मस्ताने पल.
नागफ़नी के काँटों से, 
   मरुथल से वीराने पल.
कौन, कहाँ, कब, क्यूँ, कैसे,
   लगे सवाल उठाने पल.
रात तुम्हारी यादों के,
   आ बैठे सिरहाने पल.
ख़ामोशी के आलम में,
   बीते कितने जाने पल.
तेरे जिस्म की ख़ुशबू के,
   देकर गये ख़ज़ाने पल.
उस बरगद की छाँव तले,
   बैठ रहे सुस्ताने पल.
जीवन रेत पे बिखर गये,
   मोती के थे दाने पल.
तेरी मेरी दूरी के,
   फिर आ गये जलाने पल.
जाने फिर कब लौटेंगे,
   वो गुज़रे दीवाने पल.
तुम और मैं, हम हो बैठे -
  थे कितने मनमाने पल.
सदियों पर इल्ज़ाम बने,
   निकले बहुत सयाने पल.
इस दुनिया में ऐ "साबिर"
   कौन है क्या ? न जाने पल.

आग बरसती असमान से, मेघा तुम कब बरसो

आग बरसती असमान से, मेघा तुम कब बरसोगे।
सड़कें सूनी गलियां सूनी, सूने हुए नजारे रे,
मंदिर सूने मस्जिद सूनी, सूने मठ गुरूद्वारे रे,
घाम पसरता डाली -डाली, गर्मी द्वारे -द्वारे रे,
जनजीवन बेहाल हो गया, सिकुड़े नदी किनारे रे ,
श्याम रंग संग लगन लगते, तन थे जो उजियारे रे,
चातक पीहू-पीहू भूले, पानी -पानी पुकारे रे,
हम तरसे तेरे बिन बदरा, तुम भी हम बिन तरसोगे।
आग बरसती असमान से, मेघा तुम कब बरसोगे।