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सोमवार, 18 जुलाई 2011

आग बरसती असमान से, मेघा तुम कब बरसो

आग बरसती असमान से, मेघा तुम कब बरसोगे।
सड़कें सूनी गलियां सूनी, सूने हुए नजारे रे,
मंदिर सूने मस्जिद सूनी, सूने मठ गुरूद्वारे रे,
घाम पसरता डाली -डाली, गर्मी द्वारे -द्वारे रे,
जनजीवन बेहाल हो गया, सिकुड़े नदी किनारे रे ,
श्याम रंग संग लगन लगते, तन थे जो उजियारे रे,
चातक पीहू-पीहू भूले, पानी -पानी पुकारे रे,
हम तरसे तेरे बिन बदरा, तुम भी हम बिन तरसोगे।
आग बरसती असमान से, मेघा तुम कब बरसोगे।

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