आग बरसती असमान से, मेघा तुम कब बरसोगे।
सड़कें सूनी गलियां सूनी, सूने हुए नजारे रे,
मंदिर सूने मस्जिद सूनी, सूने मठ गुरूद्वारे रे,
घाम पसरता डाली -डाली, गर्मी द्वारे -द्वारे रे,
जनजीवन बेहाल हो गया, सिकुड़े नदी किनारे रे ,
श्याम रंग संग लगन लगते, तन थे जो उजियारे रे,
चातक पीहू-पीहू भूले, पानी -पानी पुकारे रे,
हम तरसे तेरे बिन बदरा, तुम भी हम बिन तरसोगे।
आग बरसती असमान से, मेघा तुम कब बरसोगे।
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