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सोमवार, 18 जुलाई 2011

अनचाहे अनजाने पल

अनचाहे अनजाने पल.
   गये कहाँ मस्ताने पल.
नागफ़नी के काँटों से, 
   मरुथल से वीराने पल.
कौन, कहाँ, कब, क्यूँ, कैसे,
   लगे सवाल उठाने पल.
रात तुम्हारी यादों के,
   आ बैठे सिरहाने पल.
ख़ामोशी के आलम में,
   बीते कितने जाने पल.
तेरे जिस्म की ख़ुशबू के,
   देकर गये ख़ज़ाने पल.
उस बरगद की छाँव तले,
   बैठ रहे सुस्ताने पल.
जीवन रेत पे बिखर गये,
   मोती के थे दाने पल.
तेरी मेरी दूरी के,
   फिर आ गये जलाने पल.
जाने फिर कब लौटेंगे,
   वो गुज़रे दीवाने पल.
तुम और मैं, हम हो बैठे -
  थे कितने मनमाने पल.
सदियों पर इल्ज़ाम बने,
   निकले बहुत सयाने पल.
इस दुनिया में ऐ "साबिर"
   कौन है क्या ? न जाने पल.

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