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बुधवार, 29 सितंबर 2010

भारत में रोजाना 1800 से 1900 कन्या भ्रूण हत्या

पुरूषों के मुकाबले भारत में लगातार महिलाओं की कम होती संख्या के कारण पैदा हो रही कई किस्म की नृशंस सामाजिक विकृतियों के बीच भारत सरकार ने स्वीकार किया है कि 2001-05 के दौरान रोजाना करीब 1800-1900 कन्या भ्रूण की हत्याएं हुई हैं।
केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसआ॓) की एक रपट में कहा गया है कि साल 2001-05 के बीच करीब 6,82,000 कन्या भ्रूण की हत्या हुई है अर्थात इन चार सालों में रोजाना 1800 से 1900 कन्या भ्रूण की हत्या हुई है।
हालांकि महिलाओं से जुड़ी समस्या पर काम कर रही संस्था सेंटर फार सोशल रिसर्च की निदेशक रंजना कुमारी का कहना है कि यह आंकड़ा भयानक है लेकिन वास्तविक तस्वीर इससे भी अधिक डरावनी हो सकती है। गैरकानूनी और छुपे तौर पर और कुछ इलाकों में तो जिस तादाद में कन्या  भ्रूण  की हत्या हो रही है उसके अनुपात में यह आंकड़ा कम लगता है। हालांकि आधिकारिक आंकड़े इतने भयावह हैं तो इससे इसका अंदाजा तो लगाया जा सकता है कि समस्या कितनी गंभीर है।
इधर सरकारी रपट में कहा गया है कि 0-6 साल के बच्चों का लिंग अनुपात सिर्फ कन्या भ्रूण के गर्भपात के कारण ही प्रभावित नहीं हुआ बल्कि इसकी वजह कन्या मृत्यु दर का अधिक होना भी है। बच्चियों की देखभाल ठीक तरीके से न होने के कारण उनकी मृत्यु दर अधिक है। इसलिए जन्म के समय मृत्यु दर एक महत्वपूर्ण संकेतक है जिस पर ध्यान देने की जरूरत है।
रपट के मुताबिक 1981 में 0-6 साल के बच्चों का लिंग अनुपात 1981 में 962 था जो 1991 में घटकर 945 हो गया और 2001 में यह 927 रह गया है। इसका श्रेय मुख्य तौर पर देश के कुछ भागों में हुई कन्या भ्रूणकी हत्या को जाता है।उल्लेखनीय 1995 में बने जन्म पूर्व नैदानिक अधिनियम :प्री नेटल डायग्नास्टिक एक्ट, 1995 के मुताबिक बच्चे के लिंग का पता लगाना गैर कानूनी है जबकि इसका उल्लंघन सबसे अधिक होता है।
 भारत सरकार ने 2011-12 तक बच्चों का लिंग अनुपात 935 और 2016-17 तक इसे बढ़ा कर 950 करने लक्ष्य रखा है। देश के 328 जिलों में बच्चों का लिंग अनुपात 950 से कम है।
सीएसआ॓ के अध्ययन के मुताबिक सबसे बड़ी चुनौती है नियमित रूप से लिंग अनुपात पर नजर रखना जो एक उत्कृष्ट जन्म पंजीकरण प्रणाली के जरिए ही संभव है।

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