कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 19 अक्तूबर 2010

खत लिख दे सावरियां के नाम

खत लिख दे सावरियां के नाम बाबू वो जान जायेंगे पहचान जायेंगे कोई तीन दशक पूर्व बंबईया फिल्म का यह गीत उन लोगों को बहुत भाता था जो दूसराेंं के लिये खत लिखने का काम करते थे और इसके बदले उन्हे चन्द पैसे मिल जाया करते थे1लेकिन अब न तो खत लिखने व पढने का काम मिलता है और न ही यह गाना बजता है1

पुराने दिनों की याद करते हुए एक खत लिखने वाले बुजुर्ग 70 वर्षीय रामाश्रय शर्मा ने बताया कि वे कक्षा चौथी में जब पढते थे तो पोस्टकार्ड पढने और फिर जवाबी पोस्टकार्ड लिखने के एवज में उन्हे एक आना मिला करता था 1 महीने में 10 से 12 आने की कमाई पोस्टकार्ड लिखने और पढने से हो जाया करती थी 1 बचपन में जेब खर्च के लिये यह रकम काफी थी1


आठवीं कक्षा तक शिक्षा प्राप्त श्री शर्मा ने बताया कि नौकरी न मिलने तक वे खत पढने और लिखने का काम करते रहे 1इससे जहां गांव में उनकी अच्छी खासी पूछपरख होती थी और कमाई भी हो जाया करती थी ् लेकिन जैसे जैसे शिक्षा का प्रसार प्रचार होता गया लोगों ने खुद ही लिखना पढना शुरू कर दिया1 वर्ष 1968 तक वे इस काम में लगे रहे और उनकी देखा देखी गांव के और भी पढे लिखे लडकों ने खत लिखने और पढने का काम शुरू कर दिया था 1यहां तक कि वे लोग आसपास के गांवों में भी जाकर लोेगों की चिट्ठियां पढकर सुनाने का काम कर दिया करते थे 1

श्री शर्मा ने बताया कि कुछ डाक बाबू अर्थात डाकिया भी खत पढने और लिखने का काम किया करते थे 1सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि खत पढने और लिखने वाला व्यक्ति खत की बात सार्वजनिक नहीं करता था और इस तरह वह उस व्यक्ति का विश्वास पात्र हो जाता था जिसके लिये वह खत लिखने का काम करता था1 अब न तो लोग पोस्टकार्डों का इस्तेमाल करते हैं और न ही आज के दौर में लोग किसी से अपनी चिट्ठी पढवाते हैं1 शायद इसलिए अब खत लिख दे सावरियां के नाम बाबू जैसा गाना भी नहीं बजता है1

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें